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________________ कॉमनसेन्स वाला तो कैसे भी जंग लगे हुए तालों को भी खोल देता है। किसी के साथ टकराव में नहीं आता। टकराव को कॉमनसेन्स से ही टाल देता है, घर पर, बहार, ऑफिस वगैरह सभी जगह पर । घर पर तो पत्नी के साथ मतभेद ही नहीं पड़ने देता। चाहे कितना भी बुद्धिशाली हो लेकिन यदि उसमें व्यवहारिकता नहीं होगी, यानी कि कॉमनसेन्स नहीं होगा तो झगड़े ही होंगे। अहंकार जितना डाउन हो, उतनी ही सुंदर किसी के भी साथ 'डीलिंग' हो सकती है। सब के साथ मिलनसारिता से तरह-तरह की बातचीत करने से कॉमनसेन्स विकसित होता है । व्यवहार का तिरस्कार करने से कॉमनसेन्स खत्म हो जाता है। कॉमनसेन्सवाले का सुर सभी के साथ मिल जाता है । व्यवहार में डिसीज़न लेने के लिए, टकराव टालने के लिए कॉमनसेन्स ही काम में आता है । सरल व्यक्ति धोखा खाता है, लेकिन बदले में उसका कॉमनसेन्स बढ़ता जाता है । कॉमनसेन्स तो वहाँ तक क्रियाकारी रहता है कि कोई चाहे कितना भी अपमान करे, फिर भी 'डिप्रेशन' नहीं आने देता । जहाँ स्वार्थ या मतलब हो, वहाँ पर कॉमनसेन्स का विकास नहीं हो पाता क्योंकि मतलब निकालने में ही कॉमनसेन्स खर्च हो जाता है । कोई किसी भी एक विषय में एक्सपर्ट हो जाए तो उसका कॉमनसेन्स रुंध जाता है । कॉमनसेन्सवाले के पास सामनेवाले की प्रकृति की स्टडी होती है इसीलिए तो वह कोई भी ताला खोल सकता है। कॉमनसेन्स एक प्रकार की सूझ है और सूझ कुदरती देन है। जबकि बुद्धि नफा-नुकसान दिखाने वाली होती है और प्रज्ञा तो ज्ञानप्रकाश मिलने के बाद ही उत्पन्न होती है। कॉमनसेन्स संसार के ताले खोल सकता है लेकिन मोक्ष का एक भी नहीं। जबकि प्रज्ञा मोक्ष की तरफ ले जाती है। 22
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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