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________________ "यह जो टेढ़ा है, वह मैं नहीं हूँ ऐसा ज्ञान होना', वह कहलाता है अक्रम विज्ञान और 'जो टेढ़ा है, वह मैं हूँ और मुझे सीधा होना है', वह कहलाता है क्रम!" - दादाश्री रूठना भी आड़ाई का ही प्रकार है। रूठने से नुकसान कौन उठाता है? जो रूठता है, उसके लिए क्या गाडी खड़ी रहती है? रूठनेवाले के सामने तो कितनी ही गाड़ियाँ निकल जाती हैं क्योंकि दुनिया कोई रुकने वाली नहीं है। ___ सामने वाला रूठता है वह रिसाल (जिसे दूसरों का रूठना दिखाई देता है) से रूठता है और जो रिसाल है वह रूठनेवाले को देखता है। जो रिसाल है, वह अपना स्वरूप नहीं है। और जो रूठता है, वह आत्मा नहीं है। आत्मा, आत्मा को ही देखता है, शुद्ध ही देखता है। इसी में मोक्षमार्ग समाया हुआ है। ज्ञानीपुरुष से अगर कोई रूठे, तब वहाँ पर ज्ञानीपुरुष की डीलिंग कैसी होती है? उस वीतरागता की समझ ज्ञानीपुरुष ही प्राप्त करवा सकते हैं! वीतरागता के साथ निष्कारण करुणा ही प्रत्यक्ष ज्ञानीपुरुष की विशेषता है कि परिणाम स्वरूप सामने वाला दोषमुक्त होकर मोक्षमार्ग में स्थिर हो जाता है और आत्मकल्याण साध सकता है। आड़ाई की आगे की अवस्थाओं में, रूठने पर भी अगर धार्यु नहीं होता, तब फिर वहाँ पर त्रागा (अपनी मनमानी करने या बात मनवाने के लिए किए जाने वाला नाटक) करके भी सामनेवाले से अपना धार्यु करवाकर ही चैन लेता है।। धार्यु करवाने के लिए उठापटक करना, सिर कूटना, रोना और सामनेवाले को ऐसे शिकंजे में कस देता है कि घबराकर सामने वाला वश में आ ही जाता है, ये सभी हैं त्रागा के लक्षण! ऐसे लोगों को समझाने से समाधान नहीं हो पाए तो वहाँ से खिसक जाना ही एक उपाय है। त्रागा करना भी एक कला है। बेहद शक्तियाँ खत्म कर देता है उसमें। भयंकर नुकसान उठाता है परिणामतः तिर्यंचगति पार करने तक की जोखिमदारी भी आ सकती है! 13
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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