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________________ अक्रम विज्ञानी, त्रागा में से बचने के उपाय दिखा देते हैं। ज्ञानीपुरुष प्रत्येक विकृत प्रकृति को सभी पहलुओं से देखकर-अनुभव करके उनसे मुक्ति प्राप्त करने की दृष्टि खोल देते हैं, जिससे दूसरों में भी वह दृष्टि खुलती है, खिलती है और जीवन में आड़ाईयों से, रूठने से, त्रागा से, खुद छूट सकता है या फिर आड़ाई करनेवाले से, रूठनेवाले से, और त्रागा करनेवाले से खुद बच सकता है। अपनी प्रकृति से छूट जाने की ज्ञानकलाएँ और सामनेवाले की प्रकृति के शिकंजे में नहीं फँसकर, उसके साथ समाधानपूर्वक निपटारा करने की सम्यक् प्रकार की समझ ज्ञानीपुरुष अक्रम विज्ञान द्वारा बता देते हैं, जो मोक्षमार्ग में बाधकता का निवारण करने के लिए अत्यंत उपकारी हो जाती है! २. उद्वेग : शंका : नोंध सामनेवाले से धार्यु करवाने के तरीकों में आड़ाई से शुरुआत करके रूठने का तरीका आज़माता है और उसके बावजूद भी अगर सफल नहीं होता तो त्रागा करता है। लेकिन फिर भी यदि धार्यु नहीं होता तो उसे अत्यंत उद्वेग होता है। यदि धार्यु करवाने की दानत कम हो जाए तो उद्वेग के दुःख व भोगवटे में से छूटता जाएगा। मोह की पराकाष्ठाओं से उद्वेग का सर्जन होता है और उद्वेग से भयंकर कर्म बंध जाते हैं। प्रकृति के वेग-आवेग और उद्वेग का सूक्ष्म स्पष्टीकरण ज्ञानीपुरुष ही बता सकते हैं! और उद्वेग के निमित्त कारणों से मुक्त होने की सरल चाबियाँ भी ऐसे ज्ञानीपुरुष से प्राप्त होती हैं। उद्वेग से बचने के लिए उसके निमित्तों को ढूंढकर उनसे दूर रहना चाहिए या फिर वह चीज़ चाहे कितनी भी अमूल्य क्यों न हो, लेकिन उसे भी छोड़ देना पड़ता है, लेकिन उद्वेग के कारण को जड़ से उखाड़ देना पड़ता है क्योंकि ज़रा सा भी उद्वेग होने लगे, तभी से वह मोक्षमार्ग नहीं है। अक्रम विज्ञान में, जो उद्वेग में फँसता है, उसे खुद देखता रहे
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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