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________________ दिल को ठंडक हो ऐसी सही बात को भी स्वीकार नहीं करे, वही आड़ाई का स्वरूप है। ऐसे लोग खुद अपने ही मत से चलते हैं। जो ज्ञानी के मत से चलता है, उसकी आड़ाईयाँ खत्म हो जाती हैं। प्रकृति के टॉपमोस्ट (सर्वोत्कृष्ट) गुण मोक्षमार्ग में राहखर्च के लिए मिलते हैं। अत्यंत नम्रता-अत्यंत सरलता-सहज क्षमा-आड़ाई तो नाम मात्र को भी नहीं हो, तो ऐसे गुण प्रगति का प्रमाण कहे जा सकते हैं। अपनी आड़ाईयों का भान रहना, वही 'जागृति' है! । आड़ाईयाँ मंद हो जाने के बावजूद भी ममता वाला व्यक्ति संसार में ही डूबा रहता है, जबकि यदि ममता रहितता हो और सूक्ष्म से सूक्ष्म आड़ाईयों को पार कर ले तो वह अंत में ज्ञानीपद प्रकट करवाता है! आड़ाई की जड़ अहंकार है। 'आड़ाई करेंगे, तभी सब सीधे होंगे' ऐसा ज्ञान सुना-उस पर श्रद्धा बैठी तो फिर आड़ाईयाँ वर्तन में आए बगैर नहीं रहतीं। ज्ञानीपुरुष के सामने यदि कोई आड़ाई करे तो उसे ज्ञानीपुरुष की तरफ से कभी भी आधार या उत्तेजन नहीं मिलता। वहाँ उसे सीधे हुए बगैर कोई चारा ही नहीं है! निस्पृहता के सामने आड़ाईयाँ गिर जाती हैं। जो संपूर्ण सर्वांगी सरल हैं, ऐसे ज्ञानीपुरुष का राजीपा (गुरुजनों की कृपा और प्रसन्नता) तो सरलता नामक गुण द्वारा सहज रूप से मिल ही जाता है। कोई खद अपनी आडाई को जाने, तभी से ऐसा कह सकते हैं कि वह वापस पलटा। स्वरूपज्ञान होने के बाद ही आड़ाई पहचानी जा सकती है और तभी वह आड़ाई कम होती जाती हैं। परिणाम स्वरूप एक दिन आड़ाई खत्म होकर रहेंगी। बाकी, आड़ाई वाला तो पूरा मोक्षमार्ग ही चूक जाता है। दूसरों से खुद का धार्यु (मनमानी) करवाने जाएँ तो आड़ाई उत्पन्न होती है। एवं औरों की इच्छानुसार करने से आड़ाईयाँ खत्म होती जाती हैं।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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