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________________ जाएगा। दोनो बहनों का यह संदेश हर जीव अपने हृदय में स्थिर करे, तो जीवन आनंदमय-समाधिमय बनता है और जीव कल्याण-यात्रा के सच्चे पथिक बने। कैसी है मयणा की श्रद्धा? पूरा नगर भयभीत है, आकुल-व्याकुल है, जान-माल का क्या होगा ? इसकी चिंता है । शत्रु सेना ने घेरा डाल दिया है । ऐसे समय में कमलप्रभा मयणा से कहती है, 'बेटा ! अब अपना क्या होगा ? श्रीपाल को गए, लगभग १ साल हो गया, कोई समाचार नहीं है । सब भयभीत है, हमारे घर कोई नर नहीं है, क्या करेंगे? सासु माँ की बात सुनकर मयणा घबराती नहीं है और विश्वासपूर्वक कहती है, 'माता ! नवपद के प्रभाव से कोई भय नहीं है, कभी आनेवाला भी नहीं है, और आज प्रभु-पूजा करते मुझे अपूर्व आनंद हुआ, रोमांच भी हुआ । जब-जब पूजा याद आती है मेरे रोम-रोम खड़े हो जाते है, फिर भय कैसा ? कुछ अमंगल नहीं होगा, शुभ ही होगा, अच्छा ही होगा। मयणा की सिद्धचक्र-नवपद-प्रभु के प्रति कैसी अटूट श्रद्धा ? पूरे नगरमें भय व्याप्त है । राजा भी सोच रहे है कि क्या करे ? पर मयणा निर्भय है । मयणा को पता नहीं है कि मेरे पतिदेव ही सेना लेकर आए है, पता सिर्फ इतना ही है कि, सिद्धचक्र है तो सुरक्षा है, भय को कोई स्थान ही नहीं है । इससे ही 'त्वमेव शरणं मम' का भाव जीवन में एकरस हो गया है, आत्मा के प्रदेश-प्रदेश में खेल रहा है। प्रभु की पूजा करते करते कभी हमें ऐसा अपूर्व आनंद आया है क्या ? रोमांच खड़े हुए है क्या? श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा
SR No.034035
Book TitleShripal Katha Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaychandrasagarsuri
PublisherPurnanand Prakashan
Publication Year2018
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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