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________________ मयणा कहती है-मर्यादा में आनंद है । पिता मर्यादा चूके, सुरसुंदरी भी मर्यादा चूकी है, सभाजन भी मर्यादाभंग के साथ सुरसुंदरी के अरिदमन से लग्न की घोषणा सुनकर हर्षाते-हर्षात मर्यादा चूक जाते है । मयणा सोंचती है कि, सब मर्यादा चूकेंगे तो कुदरत मर्यादा में कैसे रहेगी? मर्यादा की सीमा-रेखा होती है, उसमे बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है, परंतु अंततः वही रक्षणहार है। मयणा समझती है कि पिताजी जो कह रहे हैं कि 'मैं जो कहता हूँ वो होता है'' वह बात व्यवहार नय से सत्य है, परंतु वो गर्व के कारण मर्यादाभंग कर रहे है । उन पर मान-कषाय सवार हो गया है । गलत रास्ते चढ़ गए है, तब उन्हे कर्मवाद समझाना अलग बात है, पर वर की पसंदगी तो पिता का ही अधिकार है । आर्य संस्कृति का व्यवहार विकट स्थिति का सर्जन कर रहा है, पर मयणा उसे अखंड रखती है । यह है स्याद्वाद की परिपक्वता । स्याद्वादी कभी मर्यादा नहीं तोड़ता । मयणा कहती है-मर्यादा में रहिए, भले तत्काल लाभ नहीं दिखता । सत्ता, संपत्ति, सौंदर्य, रुप, ऐश्वर्यादि किसी का भी घमंड मत कीजिए । लज्जा, मर्यादा, नम्रता रखे तो सर्वत्र आनंद है । पिता ने मयणा को कोढ़ी के साथ बिदा किया, कोढ़ी उंबर छोड़कर जाने की बात कहते है, पर मयणा नहीं जाती । रुप, लावण्य, आरोग्य, सुख शांति खतरे में है तो भी वो उंबर को छोड़ने के लिए तैयार नहीं होती । विपरीत स्थिति में भी मयणा को पिता के प्रति द्वेषभाव नहीं पूज्यभाव है । पिता ने क्रोध में भले अकार्य किया पर मयणाने मर्यादा पार नहीं की । आखिर मैं कैसी स्थिति बनी ? यह नजर के सामने ही है । अंत में... मयणा और सुरसुंदरी दोनो बहने है - मयणा कहती है-जीवन में कहीं मद-अभिमान मत करो, जीवन नंदन वन बन बाएगा। सुरसुंदरी कहती है-जीवन में कही भी अभिमान करेंगे तो दु:खी दुःखी होकर मेरी तरह भटकना पड़ेगा (भवभ्रमण करना पड़ेगा), सब चला 452 श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा
SR No.034035
Book TitleShripal Katha Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaychandrasagarsuri
PublisherPurnanand Prakashan
Publication Year2018
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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