SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीपाल जैसा पापरहित जीवन बने तो बहुत अच्छा, अन्यथा पापमय जीवन में भी सर्वस्व के भोग से एकाध गुण आत्मा के प्रदेश-प्रदेश में खेलता कर देंगे तो उस गुण की प्रधानता से दूसरे गुण खींचे चले आएंगे, दोष टल जायेंगे, ऐसा श्रीपाल राजा का कहना है । मीठी बोली बोलो अजितसेन काका ने बचपन में श्रीपाल से राज्य छीन लिया, रास्ते पर ला दिया, मार डालने की कोशिश की, फिर भी श्रीपाल अपने दुर्जन काका को राज्य लौटाने के लिए समाचार भेजते है । तब दूत को मीठी भाषा में बात करने के लिए बोलते है। आप उपकारी है, वर्षो तक राज्य संभाला ।'' कही भी दुश्मनी का भाव नहीं है । ___अजितसेन युद्ध हार जाते है, बंदी बनाये जाते है, श्रीपाल के पास जाते है तब पूज्य भाव से उनकी बेडीयाँ खोल देते है । पैरो में गिरकर माफी मांगते है । मीठी भाषा बोलकर अजितसेन काका को उनका राज्य लौटा देते है। अजितसेन हो या धवल हो ! स्वयंवर का अवसर हो या राधावेध का प्रसंग हो, कोढिया हो, लोग धिक्कार कर रहे हो इत्यादि कोइ भी प्रसंग में उंबर-श्रीपाल की बोली में कडवाश नही है । मीठी बोली जीवन सफलता का मंत्र है । यह बात श्रीपाल हम सबको समजा रहे है। श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा 41
SR No.034035
Book TitleShripal Katha Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaychandrasagarsuri
PublisherPurnanand Prakashan
Publication Year2018
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy