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________________ 4. पराकाष्ठा; उपकार और अपकार की... श्रीपाल की कथा के दो पात्र — १) श्रीपाल २) धवल दोनों एक साल भी साथ नहीं रहे, पर इस समय की दोनों की प्रवृत्ति ओर मनोदशा का विचार करें तो श्रीपाल उपकार की और धवल अपकार की पराकाष्ठा है । धवल, श्रीपाल पर निरन्तर अपकार करता जा रहा है, जान से मारने के लिए भी तीन-चार बार प्रयत्न किए, पर श्रीपाल को धवल के प्रति नफरत नहीं है, तिरस्कार और भय नहीं है ; अपना द्वेषी मृत्यु के मुख में पहुँच गया तो श्रीपाल उसे यम से भी बचा के ले आए हैं । वो अपकारी को भी उपकारी पिता तुल्य मानते हैं । अपकार और उपकार की गाडी स्वयंभू चला करती है । दोनो अपनी-अपनी वृत्ति में मस्त है । कोई अपनी मनोवृत्ति छोड़ने के लिए तैयार नहीं है । धवल द्वारा होने वाली हैरानगति श्रीपाल को हैरानगति नहीं लगती है । धवल को श्रीपाल के उपकार कभी उपकार नहीं लगते । जहाज में धवल मित्रो के आगे अपनी बात रखता है, तब मित्र उसे समझाते है कि श्रीपाल ने तुझ पर कितना उपकार किया है, जहाज छुडाए, दस गुना किराया दिया, महाकाल से मुक्ति दिलवाई । सब कुछ चला गया, सब वापिस ला दिया । ऐसे व्यक्ति को उपकारी मानकर उसकी पूजा की जाती है, मारने की तो बात बहुत दूर रही । मित्रो के I I I श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा
SR No.034035
Book TitleShripal Katha Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaychandrasagarsuri
PublisherPurnanand Prakashan
Publication Year2018
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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