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________________ उंबर में अंतरगुण वैभव नहीं होता तो मयणा संपूर्णतया निष्फल होती। उंबर-श्रीपाल के गुणवैभव के साथ-साथ अजितसेन, धवल, श्रीकान्त, मयणासुंदरी, सुरसुंदरी के पात्रों का संदेश भी व्याख्यान में आने पर लोक रुचिकर बना और पुस्तक की मांग आई । आठ वर्ष बाद पुनः आराधक श्रोताओ की चाहना और मांग को ध्यान में रखकर काम शुरु किया । जो पुस्तक आपके हाथों मे है वह तो मात्र अंगुली निर्देश स्वरुप है, चिंतक इससे अनेक गुना खोल सकते हैं । जिनशासन का कथानुयोग बंद रत्नो की पेटी जैसा है । पेटी बाहर देखने पर लकड़ी की लगती है, पर उसे खोलें तो रत्न मिलते है । चिंतक, विचारक या आराधक...अभी और ज्यादा तत्त्व संघ-समाज को दे सकते हैं । प्रत्येक कथा विभिन्न तत्त्वसभर दृष्टिकोणों से सोची जा सकती है। इस पुस्तक की पांडु लिपि की प्रेस कोपी करने में जेसर बेन (बरोड़ा), हेतलबेन (मलाड़) एवं सा.कल्पपूर्णाश्रीजी म. और प्रूफ चेक के लिए मुनि ऋषभचंद्रसागर, मुनि अजितचन्द्रसागर, सा. पूर्णिताश्रीजी म., सा.श्री दिव्यताश्रीजी म. आदि का प्रयास अनुमोदनीय है। ____ अंत में, उंबर का गुणवैभव, सत्त्व और मयणा का विवेक, दृढ़ता, श्रद्धा आदि जीवन में आराधक भाव के लिए जरुरी है । ऐसे गुणो की आंशिक भी प्राप्ति किसी वाचक को हुई हो तो, श्रम की सफलता मानकर विराम लेता हूँ। -नयचन्द्रसागर F
SR No.034035
Book TitleShripal Katha Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaychandrasagarsuri
PublisherPurnanand Prakashan
Publication Year2018
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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