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________________ ७४ प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग है चित्त को श्वसन-क्रिया के साथ जोड़ना। जब चित्त श्वसनकि साथ जड़ जाता है, तब वह श्वास को पकड़ने में यानी उसके : करने में सक्षम बनता है। यही प्रक्रिया है-मन को एकाग्र या स्थिर कर की-उसकी चंचलता को मिटाने की। इस क्रम से प्रशिक्षित किए जाने । मन स्थूल को पकड़ने में भी सक्षम होता जाता है। हम इस बात को न सोचें कि हम मन को मिटा दें। मन को मिटाना असंभव तो नहीं, पर बहुत मुश्किल है। किन्तु नाना प्रकार के आलम्बनों में भटकने वाले मन के उस भटकाव को मिटा दें, एक ही आलम्बन में लम्बे समय तक वह स्थिर रह सके ऐसा प्रयत्न करें। इसीलिए श्वास को हमने चुना है। वह एक ऐसा आलंबन है, जो सहज है-बाहर से लाना नहीं पड़ता। जब चाहें, तब उसे आलम्बन बना सकते हैं। वह न भूतकाल की स्मृति है, न भविष्य की कल्पना है, अपितु वर्तमान की वास्तविकता है। जब चित्त श्वास पर केन्द्रित होता है, तो हमें वर्तमान में जीने का अवसर प्राप्त होता है। वह एक शुद्ध और पवित्र आलम्बन है। उसके प्रति हमारा कोई राग-द्वेष हो ही नहीं सकता। दीर्घ श्वास __ श्वास दो प्रकार का होता है-सहज और प्रयत्न-जनित । प्रयत्न के द्वारा श्वास में परिवर्तन किया जा सकता है-छोटे श्वास को दीर्घ बनाया जा सकता है। साधना को विकसित करने के लिए प्राण-शक्ति की प्रचुरता अपेक्षित होती है। प्राण-शक्ति के लिए श्वास का ईंधन चाहिए। श्वास का ईंधन जितना सशक्त होगा, प्राण-शक्ति उतनी ही सशक्त होगी और प्राण-शक्ति जितनी सशक्त होगी, हमारी साधना उतनी ही सफल होगी। श्वास को सशक्त बनाने के लिए ही हम उसे 'दीर्घ' बनाते हैं। सामान्यतः आदमी एक मिनट में १५-१७ श्वास लेता है। इसके आस-पास दो स्थितियां बनती हैं। एक स्थिति है-श्वास की संख्या को बढ़ाने की और दूसरी स्थिति है श्वास की संख्या को घटाने की। दूसरे शब्दों में एक स्थिति है श्वास को छोटा करने की और दूसरी स्थिति है श्वास को लम्बाने की। ये दो स्थितियां बनती हैं। जो व्यक्ति साधना-रत नहीं है, जो बहुत आवेगशील हैं, वे व्यक्ति उस दिशा में प्रस्थान करते हैं कि श्वास छोटा हो जाता है और उसकी संख्या बढ़ जाती है। Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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