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________________ श्वास-प्रेक्षा क्र. सं. १. २. ३. ४. ६. ७. ८. ६. क्रिया वासना के आवेग में या सम्भोग में क्रोध, भय आदि उत्तेजना में नींद में बोलते समय चलते समय बैठे-बैठे सामान्य दीर्घश्वास दीर्घश्वास - पर्याप्त अभ्यास के बाद लम्बे नियमित अभ्यास से एक मिनट में औसतन श्वासों की संख्या 60-190 ४०-६० २५-३० २०-२५ १८-२० १५-१७ ८-१० ४-६ १-३ १५-१७ की संख्या ३०-४० ५०-६० तक बढ़ जाती है। आवेश में, कषाय में, वासना- प्रवृत्ति में श्वास की संख्या बढ़ जाती है। श्वास की संख्या बढ़ती है, श्वास छोटा होता है और साथ-साथ प्राण-शक्ति पर उसका प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी उसका असर होता है । किन्तु प्रेक्षा ध्यान की साधना करने वाला व्यक्ति श्वास की गति व्यवस्थित करता है । वह श्वास की लम्बाई को बढ़ाता है । श्वास मंद हो, श्वास दीर्घ हो, श्वास लम्बा हो-यह साधक का प्रथम प्रयास होता है । फलस्वरूप श्वास की संख्या घटती है, लंबाई बढ़ती है, मन शांत होता है। इसके साथ-साथ आवेश शांत होते हैं तथा उत्तेजनाएं और वासनाएं शांत होती हैं। श्वास जब छोटा होता है, तब वासनाएं उभरती हैं।, उत्तेजनाएं आती हैं, कषाय जागृत होते हैं। जब श्वास छोटा होता है, तब ये सब उभरते हैं या दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि जब ये उभरते हैं, तब श्वास छोटा हो जाता है। इन सबसे श्वास प्रभावित होता है। इन सब दोषों का वाहन है - श्वास । ये श्वास पर आरोहण करके आते हैं। जब कभी मालूम पड़े कि उत्तेजना आने वाली है, तब तत्काल श्वास को लम्बा कर दें, दीर्घ श्वास लेने लग जाएं, आने वाली उत्तेजना लौट जाएगी। इसका कारण है कि श्वास का वाहन उसे उपलब्ध नहीं हो पाया है। बिना आलंबन के उत्तेजना या वासना प्रगट नहीं हो सकती। ध्यान की साधना करने वाला साधक मन की सूक्ष्मता को पकड़ने में अभ्यस्त हो जाता है। वह जान लेता है कि मस्तिष्क के अमुक Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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