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________________ श्वास-प्रेक्षा 093 है। दूसरा ऐसा कोई भी साधन नहीं है, जो बाहर भी रहे और भीतर भी रहे। मन है, पर मन बेढंगा है। वह स्वयं इतना चंचल है कि उसे आलंबन नहीं बनाया जा सकता। उसको तो आलंबन देना पड़ेगा । योग के आचार्यों ने मन को वश में करने का एक उपाय बताया है। वह उपाय है श्वास श्वास को पकड़ते ही मन पकड़ में आ जाता है। तब मन इतना सरल, सीधा हो जाता है कि उसकी चंचलता मिट जाती है। इसलिए हमने ध्यान की प्रक्रिया में श्वास को आलंबन बनाया है। यह श्वास वह यात्री है, जो बाहर की यात्रा भी करता है और भीतर की यात्रा भी करता है। यह वह दोष है, जो भीतर को भी प्रकाशित करता है और बाहर को भी प्रकाशित करता है। यदि हम भीतर की यात्रा करना चाहें, तो हमारे पास एकमात्र उपाय है कि हम मन को श्वास के रथ पर चढ़ा दें और उसके साथ-साथ भीतर चले जाएं। हमारी अन्तर्यात्रा प्रारम्भ हो जाएगी, हम अन्तर्मुखी हो जाएंगे, हम आध्यात्मिक बन जाएंगे। आध्यात्मिक बनने का सरल उपाय है-श्वास के साथ मन को जोड़ देना, दोनों का योग कर देना । श्वास का आलम्बन क्यों ? प्रश्न हो सकता है कि श्वास को ही आलम्बन क्यों बनाया जाए ? श्वास- क्रिया के विशिष्ट स्वरूप को हम वैज्ञानिक धारणाओं के आधार पर समझ सकते हैं। हमारे शरीर के भीतर चलने वाले तंत्रों और क्रियाओं का नियंत्रण दो प्रकार से होता है १. ऐच्छिक रूप से (Voluntarily ) २. स्वतः संचालित रूप से (Autonomically) हाथ-पैर आदि का संचालन, मांसपेशियां का आकुंचन-विकुंचन आदि क्रियाएं स्वतः संचालित न होकर ऐच्छिक रूप से नियंत्रित की जाती हैं। दूसरी ओर पाचन (Digestion). रक्त संचार (Blood Circulation) हृदय की धड़कन (Heart-rate) आदि क्रियाएं ऐच्छिक न होकर स्वतः संचालित होती हैं। श्वसन (Respiration) एक ऐसी क्रिया है, जिनका नियन्त्रण स्वतः संचालित रूप से भी होता है और ऐच्छिक रूप से भी। दूसरे शब्दों में कहें तो एक श्वास ही ऐसी क्रिया है, जो जाने-अनजाने हमें संभालती है। शुद्ध, सहज और आंतरिक आलम्बन जब हम ऐच्छिक नियंत्रण की बात करते हैं, तो उसका तात्पर्य होता Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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