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________________ प्रेक्षाध्यान: सिद्धान्त और प्रयोग प्राणवायु को नहीं जान सकते। योग के आचार्यों ने जो कुछ इस विषय में I लिखा था, आज का विज्ञान उससे सहमत होता जा रहा है। हम प्राण से चले, प्राणवायु पर आए और प्राणायाम तक पहुंचे। अब हमारी यात्रा उलटी शुरू होती है। हम प्राणायाम से चलते हैं। हमारा प्राणायाम का अभ्यास अच्छा होना चाहिए। प्राणवायु स्वयं सध जाएगी। प्राणवायु कितनी मात्रा में लेनी चाहिए, प्राणवायु कहां तक पहुंच रही है. इसका भी ज्ञान होना चाहिए। प्राणवायु को ठीक ले लेते हैं, तो प्राण को सक्रिय करने की क्षमता जागृत हो जाती है । प्राणशक्ति के आधार पर योगी जन विचित्र प्रकार के काम कर दिखाते हैं । तैजस शरीर के अनुग्रह और विग्रह करने की शक्ति होती है। तेजोलब्धि र - सम्पन्न व्यक्ति जला सकता है, नष्ट कर सकता है, मार सकता है, वह अनुग्रह भी कर सकता है, दे भी सकता है उनमें देने की भी क्षमता होती है। ये सारी प्राणशक्ति की क्रियाएं हैं । प्राण का सम्बन्ध है - तैजस से यह होता है, तब प्राणायाम से ली गयी प्राणवायु की अग्नि के द्वारा प्राण को इतना उद्दीप्त कर दिया जाता है, प्राण इतना ज्वलित हो जाता है कि उसमें अद्भुत क्षमताएं प्रकट हो जाती हैं। इस दृष्टि से प्राणायाम का बहुत बड़ा महत्त्व है। प्राण के सारे केन्द्र मस्तिष्क में हैं, किंतु प्राण की धारा के दो मार्ग हो सकते हैं। उसका एक बाहरी रास्ता है और एक भीतरी रास्ता है। बाहरी रास्ते से प्राणशक्ति जाती है, तो वह हमारी शरीर-तंत्रों को सक्रिय बनाती है। जो नॉर्मल शक्ति है, वह उसी से उत्पन्न होती है, वह अतिरिक्तता नहीं लाती। यह हमारे दस प्राणकेन्द्रों को सक्रिय करती है और जीवन-यात्रा को सही ढंग से चलाती है। जब हम प्राण-शक्ति के प्रवाहित होने वाले इस मार्ग को बदल देते हैं, तो वहां भिन्न प्रकार की शक्ति पैदा होती है । ७२ ध्यान का आलम्बन हम अपनी सुप्त चेतना को जागृत करना चाहते हैं- अपनी-शांति के स्रोतों को उद्घाटित करना चाहते हैं । सूक्ष्म से परिचित होना चाहते हैं । यदि हमें सूक्ष्म से परिचित होना है, तो सबसे पहले हम स्थूल को सम्यक् प्रकार से जानें। बाहर का दरवाजा खोले बिना भीतर के दरवाजे तक नहीं पहुंचा जा सकता। हमें स्थूल की ओर गति करनी होगी। ध्यान से श्वास का आलंबन लेते हैं। इससे स्थूल से सूक्ष्म की ओर गति प्रारंभ हो जाती है ! श्वास ही एक ऐसा तत्त्व है, जो बाहर भी आता है और भीतर भी जाता Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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