SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कायोत्सर्ग प्रयोजन मनःकायिक (Psychosomatic) प्रयोजन उच्च रक्तचाप की बीमारी होने पर भी बहुत वर्षों तक उसके रोग-लक्षण सामान्यतः सामने नहीं आते हैं, क्योंकि इस बीमारी का मायावी स्वभाव अपना खतरनाक प्रभाव छिपाकर अपने आपको निर्दोष प्रतीत कराता है। किन्तु अन्ततोगत्वा यह बीमारी हृदय या मस्तिष्क को क्षतिग्रस्त कर देती है अथवा व्यक्ति को एकाएक मृत्यु के मुंह में ढकेल देती है। यह बीमारी प्रत्यक्ष रूप में अथवा धमनियों के कड़ेपन के बढ़ जाने से परोक्ष रूप में हृदय और मस्तिष्क के ऊतकों के विनाश का कारण बन जाती है। जब धमनी का कड़ापन बढ़ जाता है, तब सामान्य रूप से उसका निशाना हमारी तीन प्राणाधार (Vital) अवयवों में से किसी एक को बनाया जाता है-हृदय, मस्तिष्क या गुर्दे । उच्च रक्तचाप या हाइपरटेंशन हृदय को ऊंचे दबाव पर रक्त पम्प करने के लिए बाध्य कर देता है। इससे हृदय को अधिक कठोर श्रम करना पड़ता है तथा उस पर क्षतिकारक दबाव पड़ता है। उच्च रक्तचाप की यह बीमारी इसीलिए ज्यादा खतरनाक है कि इससे धमनियों के कड़े बनने की गति तेज हो जाती है। धमनियों के कड़ेपन का मुख्य कारण है धमनियों के अन्दर की दिवालों पर रक्त के थक्के, वसा (या चर्बी) और कैल्शियम आदि की परत जमना। सामान्य रूप से नरम और लचीली रहने वाली धमनियां कठोर बन जाती है, उनका लचीलापन नष्ट हो जाता है तथा वे आंशिक रूप से अथवा पूर्ण रूप से अवरुद्ध हो जाती हैं। इस अवरोध या रुकावट के घोर परिणाम आ सकते हैं। धमनियों के कड़ेपन की बीमारी (Etherosclerosis) होने का खतरा रक्तचाप बढ़ने के साथ बढ़ जाता है। अर्थात् जितना-जितना रक्तचाप बढ़ता है, उतना-उतना खतरा बढ़ता है। यदि हृद्-धमनियां (Coronaries), जो बहुत पतली होती हैं अवरुद्ध हो जाएं, तो हृदय की कोशिकाओं की मृत्यु हो जाती है तथा दिल का दौरा पड़ जाता है। यदि मस्तिष्क की धमनियों में अवरोध पैदा हो जाए तो मूर्छा, मस्तिष्क की नस का फटना (Brain Haemorrhage) या पक्षाघात के दौरे पड़ना आदि घटित हो सकता है। इस प्रकार सतत बने रहने वाला उच्च रक्तचाप या हाइपरटेंशन Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy