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________________ पक्षा ध्यान : सिद्धान्त और प्रयोग की मुद्रा में खड़ा है। जो कुछ हो रहा है, होने दे। पैर दर्द कर रहे हैं करें। शरीर दुख रहा है, दुःखे। पानी बरस रहा है, बरसे। आंधी और तूफान आ रहे हैं, आए। सहिष्णुता-सहन करना और सहन करते रहना। जो होता है होने दें, कोई चिन्ता नहीं। इस चिन्ता से मुक्त हो जाना ही कायोत्सर्ग है। जिसमें सहिष्णुता का भाव विकसित नहीं है, कह कभी कायोत्सर्ग नहीं कर सकता। शरीर में दर्द होते ही स्थिरता टूट जाती है, आसन बदल दिया जाता है। मक्खी या मच्छर का स्पर्श होते ही हाथ उठ जाता है। सारा शरीर अस्थिर हो जाता है, चंचल हो जाता है। कायोत्सर्ग नहीं सधता। सहिष्णुता या क्षांति के बिना कायोत्सर्ग नहीं हो सकता। सहिष्णुता के बिना काया का त्याग नहीं किया जा सकता। अभय, अभय और अभय __ जब सहिष्णुता सधती है, तब अभय घटित होता है। समूचे धर्म का रहस्य है-अभय। धर्म की यात्रा का आदि-बिन्दु है-अभय और अन्तिम बिन्दु है-अभय । धर्म का इति अभय है, धर्म अभय से प्रारम्भ होता है और अभय को निष्पन्न कर, कृतकृत्य हो जाता है। वीतरागता का आरम्भ अभय से होता है और वीतरागता की पूर्णता भी अभय में होती है। ___ जो व्यक्ति भय-मुक्त नहीं होता, वह कभी धार्मिक नहीं बन सकता, कायोत्सर्ग नहीं कर सकता। कायोत्सर्ग का अर्थ है-अभय । कायोत्सर्ग का अर्थ है-शरीर की चिंता से मुक्त हो जाना। शरीर की चिंता से मुक्त हो जाना, सरल-सी बात लगती है। परन्तु यह इतनी सरल बात नहीं है। शरीर के प्रति बने हुए भय से छुटकारा पा लेना सरल बात नहीं है। 'ममेद शरीरम'-यह शरीर मेरा है-जिस क्षण में यह स्वीकृति होती है, उसी क्षण में भय पैदा हो जाता है। यह भय का उत्पत्ति का मूल कारण है। शरीर का ममत्व भय उत्पन्न करता है। ममत्व और भय दो नहीं है। जहां ममत्व है. वहां भय है और जहां भय है. वही ममत्व है। ममत्व को छोड़ना भय-मुक्त होना है और भय-मुक्त होने का अर्थ है-ममत्वहीन होना। . शरीर के ममत्व को छोडना चैतन्य के प्रति जागना है। शरीर के प्रति जो ममत्व है, उससे छुटकारा पाना बहुत बड़ी उपलब्धि है। Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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