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________________ सिद्धान्त और प्रयोग ५४ हार्ट-अटैक का कारण या मूर्च्छा (हेमरेज, पक्षाघात आदि) जैसे मृत्यु के प्रमुख निमित्तों का एक अप्रत्यक्ष कारण है । हाइपरटेंशन का एक प्रमुख कारण है अव्याख्येय ( Essential ) हाइपरटेंशन, जिनका अनुपात है -८० से ६५ प्रतिशत। इसके कारणों का अब तक पता नहीं चला है। सामान्य रूप से मानसिक दबाव ( या तनाव) को इसका कारण माना जाता है। क्रोध, भय, चिंता जैसे भावात्मक आवेश. आवेग इसके होने के मुख्य रूप से कारणभूत होते हैं। यद्यपि यह बात सामान्य रूप से मानी जाती है, फिर भी चिकित्सा- शास्त्रियों ने इस ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है। दबावपूर्ण स्थितियां और इनसे उत्पन्न होने वाले तनाव बहुधा इस प्रकार के अव्याख्येय हाइपरटेंशन के प्रत्यक्ष या परोक्ष निमित्त बन सकते हैं। यह प्रश्न होना स्वाभाविक है कि क्या हम हाइपरटेंशन के अपरिहार्य खतरनाक परिणामों से बच सकते हैं ? क्या हमारे शरीर के भीतर ऐसी कोई प्रणाली है, जो दबाव की प्रणाली से नितांत विलोम रूप में कार्य कर सके ? इसका उत्तर है- 'हां, है ।' सौभाग्य से हमारे शरीर में दबाव- पूर्ण स्थितियों का प्रतिकार करने के लिए एक आंतरिक प्रणाली है जिसे सक्रिय करने से निश्चित रूप से रक्तचाप को घटाया जा सकता है। हाइपरटेंशन के मरीजों को इस प्रतिरक्षात्मक प्रणाली को प्रवर्तित करना सिखाया जा सकता है, जिससे वह अपने रक्तचाप को कम कर सकता है। अगले प्रकरण में वर्णित कायोत्सर्ग का प्रयोग रक्तचाप को कम करने का एक उपचार है। युगों-युगों से यह प्रयोग मानवीय परम्पराओं में प्रचलित रहा है। चूंकि निरन्तर बने रहने वाला उच्च रक्तचाप धमनी - काठिन्य जैसी खतरनाक बीमारी पैदा करने में निमित्तभूत होता है, आनुषंगिक दुष्परिणाम न हो ऐसे किसी भी उपाय से रक्तचाप को कम करना श्रेयस्कर होगा । हाइपरटेंशन का प्रतिकार करने वाली औषधियां हमारे अनुकंपी नाड़ी संस्थान की प्रवृत्ति को निरुद्ध कर रक्तचाप को कम कर देती है, किन्तु ऐसी औषधियां खतरनाक आनुषंगिक दुष्परिणाम लाती हैं और उससे अधिक गम्भीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं। उपर्युक्त औषधियों की तरह कायोत्सर्ग के प्रयोग से उच्च रक्तचाप को कम किया जा सकता है, पर यह एक निरापद मार्ग है । कायोत्सर्ग के नियमित अभ्यास का मूल्य इसलिए बढ़ जाता है कि औषधियों के साथ उत्पन्न होने वाले आनुषंगिक दुष्परिणामों Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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