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________________ प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग बनी रहीं, पर मनुष्य ज्यों-ज्यों सभ्यता के क्षेत्र में आगे बढ़ता गया, त्यों-त्यों अपनी इन नैसर्गिक उपलब्धियों से वंचित होता गया। फिर भी किसी तरह लगभग प्रत्येक गांव या समाज में इक्के-दुक्के ऐसे व्यक्ति अवश्य मिलते हैं. जो अपनी ऊपरी उल्लिखित संज्ञाजन्य उपलब्धियों को पर्याप्त मात्रा में बचा कर रखते हैं। ऐसे व्यक्तियों को सामान्यतः "उपचारकर्ता" (हीलर) की संज्ञा दी जाती है। छोटे गांवों में "सयाना", "ओझा", "झाड़ा-झपटा करने वाला" आदि व्यक्तियों के रूप में हम आज भी ऐसे "उपचार-कर्ताओं" को देख सकते हैं। ऐसे 'महाशयों को प्राकृतिक उपचार, पथ्य-परहेज, जड़ी-बूटी, हड्डी बैठाना (पहलवानों द्वारा हड्डी की मरम्मत), साधारण शल्य-क्रिया आदि उपचारों के अलावा आस्था-उपचार (फेंथ - हीलिंग) की पद्धति का ज्ञान भी था, जिसके द्वारा वे रोगी को शिथिलीकरण करवा कर या सम्मोहित कर सुझाव/निर्देश देते थे। इस प्रकार सुझाव - चिकित्सा अथवा स्वयं- सूचनाचिकित्सा मनोरोग-चिकित्सा प्रणालियों (साइकोथेरेपी) में सर्वाधिक प्राचीन पद्धति है, ऐसा कहा जा सकता है। ४२ प्राचीन काल से अब तक प्रायः सभी संस्कृतियों ने चैतन्य की गहराई के स्तरों की छानबीन करने का प्रयत्न किया है। इस गवेषणा के दौरान जाने-अनजाने शिथिलीकरण / सुझाव - चिकित्सा की यह प्रक्रिया हस्तगत होती रही है। प्रत्येक संस्कृति ने अपनी-अपनी मान्यता के अनुसार चैतन्य की इन शक्तियों की व्याख्या करने की कोशिश की है। इस विषय में शोधकर्ताओं ने बताया है कि सभी आदिम संस्कृतियां अपनी धार्मिक प्रवृत्ति के रूप में उपर्युक्त प्रक्रिया को नाना रूपों में प्रयुक्त करती थीं। अब तक के समग्र इतिहास के दौरान यह बात पाई गई कि इन विविध रूपों में एक प्रबल एकरूपता विद्यमान थी तथा उसका बुनियादी तत्त्व था-शिथिलीकरण और सुझाव (या सूचन) । इसी तत्त्व को रोगी के उपचार के काम में लिया जाता था । मिश्र (देश) में तीन हजार वर्ष पूर्व ऐसी प्रक्रिया के प्रमाण उपलब्ध होते हैं, जिसका अत्यन्त आधुनिक प्रक्रियाओं के साथ अदभुत सा दृश्य सामने आता है। सभ्यता के विकास के साथ 'आस्था उपचार में लोगों का विश्वास क्रमशः क्षीण होता गया और अन्त में लगभग नष्ट हो गया। 'आस्था उपचार' की वह पद्धति भी जादू-टोना करने वालों या नीम हकीमों के हाथों में चली गई। मध्य-युग में 'आस्था उपचार की पद्धति पंडा पुरोहितों के हाथों में Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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