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________________ प्रेक्षाध्यान: सिद्धान्त और प्रयोग नींद के दौरान स्नायुओं के सामान्य रूप से विद्युत् प्रवाह बन्द हो जाता है और विद्युत्-चुम्बक प्रायः चुम्बकत्व-रहित हो जाता है। केवल कुछ सुरक्षा ओर जीव टिकाने वाली क्रियाओं में प्रवृत्त मांसपेशियों को छोड़कर शेष सारी मांसपेशियां नींद में शिथिल हो जाती हैं। ४० जब कोई व्यक्ति विश्राम की मुद्रा में होता है, तब भी स्नायुओं में प्रवाहित होने वाला विद्युत् प्रवाह बहुत मन्द-सा होता है। इससे मांसपेशियों का चुम्बीकरण भी मन्द होता है और इसलिए वे शांत-शिथिल पड़ी रहती है। जब-जब व्यक्ति किसी भी शारीरिक (मानसिक या वाचिक) क्रिया में प्रवृत्त होता है, तब-तब मस्तिष्क के आदेशानुसार नाड़ियों में विद्युत् प्रवाह को तीव्र कर दिया जाता है, जो विद्युत् चुम्बकों (मांसपेशियों) को सक्रिय बना देता है, जिससे मांसपेशियां संकुचित की जा सकती हैं। कितने सूक्ष्म क्रियात्मक स्नायुओं (मोटर नब्र्ज) को गति देना है, इसका आधार किए जाने वाले प्रयत्न की तीव्रता पर है । नींद, विश्राम और क्रियात्मकता - इन तीनों स्थितियों में से व्यक्ति दिनभर में कितनी ही बार गुजरता रहता है । पर इन तीन के अतिरिक्त एक चौथी स्थिति और है, जो असामान्य होने पर भी कुछ व्यक्तियों के दैनिक जीवन में बार-बार घटित होती है और वह स्थिति है- अतितनाव की । निरन्तर कसे हुए जबड़े, तनी हुई भृकुटियां और आमाशय की मांसपेशियों का कड़ापन - ये इस प्रकार की स्थिति के कुछ प्रत्यक्ष चिन्ह हैं। इस स्थिति में हमारी शरीरस्थ विद्युत् चुम्बकों का तीव्र विद्युत् प्रवाह के कारण अति-चुम्बकीकरण (Over-magnesization) हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप हमारी मांसपेशियों के दल एक स्थायी संकुचन की स्थिति में बने रहते हैं, जो कि बहुत बार आवश्यक होता है। इसके कारण हमारी स्नायविक और मांसपेशिय ऊर्जा का एक बहुत बड़ा हिस्सा व्यर्थ चला जाता है, क्योंकि इस स्थिति में विद्युत् का निरन्तर व्यय होता है। ऊर्जा का व्यय कितनी मात्रा में होगा, इस बात का आधार क्रियावाही मांसपेशियों की संख्या पर है, न कि उनकी लंबाई-चौड़ाई पर या उनकी शक्ति पर । जैसे-चेहरे की एक छोटी-सी मांसपेशी को संकुचित करने में उतनी ही स्नायविक ऊर्जा व्यय होती है, जितनी कि पैर की एक बड़ी मांसपेशी को सक्रिय करने में होती है। इस प्रकार ऊर्जा का होने वाला समग्र व्यय क्रियावाही तंतुओं की संख्या और विद्युत्-वाहकों के भीतर चलने वाले Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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