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________________ कायोत्सर्ग सकती है। नोबेल-पुरस्कार विजेता स्वीट्जरलैंड के सुप्रसिद्ध शरीर-वैज्ञानिक डॉ. वालटर ने इस प्रणाली को "ट्रोपोट्रोफिक प्रतिक्रिया” की प्रणाली कहा है और उसे एक सुरक्षात्मक प्रणाली के रूप में निरूपित करते हुए बताया है कि इससे अधिक दबाव के द्वारा उत्पादित प्रतिक्रियात्मक प्रक्रिया की प्रतिरोधी क्रिया की जा सकती है। डॉ. हर्बर्ट बेन्शन, एम. डी. ने इसे “तनाव-मुक्ति-प्रक्रिया” कहा है। हम अपने आपको इस प्रक्रिया का प्रशिक्षण दे सकते हैं और स्वयं-सूचन (Auto-suggestion) की तकनीक द्वारा अपनी आंतरिक सुरक्षात्मक प्रणाली को सक्रिय कर सकते हैं तथा तनाव द्वारा निष्पन्न स्थिति को दूर करने में सफलता प्राप्त कर सकते हैं; एड्रीनल के अतिरिक्त स्रावों के उत्पादन में कमी कर सकते हैं और अनुकंपी संस्थान के दुष्प्रभाव को परानुकम्पी की सक्रियता द्वारा समाप्त कर सकते हैं; अन्ततोगत्वा मांसपेशियां शिथिल और तनावमुक्त बनेगी और उदरीय कड़ापन समाप्त हो जाएगा। शिथिलीकरण (कायोत्सर्ग) का नियमित अभ्यास वर्तमान युगीन अनेक कष्टदायक बीमारियों से बचने के लिए रामबाण उपाय है। तनाव-मुक्ति क्या है ? तनाव-मुक्ति की साधना (कायोत्सर्ग का प्रयोग) तनाव को समाप्त करने का एकदम सीधा और निर्दोष तरीका है। तनाव-मुक्ति के बिना व्यक्ति न तो शांति प्राप्त कर सकता है, न स्वास्थ्य और न भूख, फिर चाहे व्यक्ति के पास सुखी होने के लिए कितने ही साधन क्यों न हों? यदि कोई भी व्यक्ति इस साधना को सीख लेता है और प्रतिदिन आधा या पौन घंटा नियमित उसका अभ्यास करता है तो किसी भी परिस्थिति में न केवल तनाव-मुक्त और अनुद्विग्न रह सकता है, अपितु अपनी कार्यक्षमता और गुणवत्ता को बढ़ा सकता है। कायोत्सर्ग की साधना का सही मूल्यांकन करने के लिए हमें मांसपेशियों की कार्य-पद्धति की जानकारी होनी चाहिए। हमारी मांसपेशियां सम्बन्धित स्नायु को उत्तेजना मिलते ही विद्युत् वेग से संकुचित होती हैं। हमारी कंकाली मांसपेशियों के कारण से ही हम इच्छानुसार हलन-चलन कर सकते हैं। हलन-चलन की क्रिया को समझने के लिए मांसपेशियों को हम विद्युत-चुम्बक (electro magnet) के साथ उपमित कर सकते हैं और जो स्नायु (या नाड़ी) उसे उत्तेजित करता है, वह उस विद्युत् के तार के समान है, जो उसको मस्तिष्क से जोड़ता है। Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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