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________________ प्रक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग स्नायु मण्डल को शक्ति सम्पन्न एवं सक्रिय करने के लिए आसन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । स्नायुओं में क्रियावाहिनी और ज्ञानवाहिनी दोनों प्रकार की नाड़ियां होती हैं। आसन से उन पर विशेष प्रकार का दबाव पड़ता है, जिससे उनका संकोच विकोच होता है। इससे वे पुष्ट एवं सक्रिय बनती हैं। उनकी सक्रियता एवं क्रियाशीलता शक्ति उत्पन्न करती है। स्नायुमंडल मस्तक से लेकर पांव के अंगुष्ठ तक फैले हुए हैं। आसन से समस्त स्नायु प्रभावित होते हैं, अतः स्वास्थ्य-साधना की दृष्टि से आसन की उपयोगिता से इनकार नहीं किया जा सकता । १८० साधना की दृष्टि से जोड़ों का लचीलापन अत्यन्त अपेक्षित है। सुषुम्नाशीर्ष तथा सुषुम्ना के जोड़ों में लचीलापन होने से उनके अन्दर से प्रवाहित होने वाले शक्ति स्रोतों को सक्रिय किया जा सकता है। स्वास्थ्य एवं साधना की दृष्टि से सुषुम्ना (स्पाइनलकोर्ड) का स्वस्थ होना अत्यन्त आवश्यक है। आसनों से सुषुम्ना पर सीधा असर होता है। आसन की गतिविधि से पाचन संस्थान सक्रिय बनता है। उससे रासायनिक द्रव्यों का समुचित स्त्राव होता है। आसनों का असर रक्त संचार पर भी होता है। आसन से रक्त-शिराओं की गति में संकोच - विकोच होता है, जिससे उनमें रक्त संचार सम्यक्तया होने लगता है। साथ ही प्रत्येक अंग का पोषण एवं अशुद्ध तत्त्व का परिहार होता है। बौद्धिक विकास के साथ भौतिक वातावरण ने व्यक्ति को आज तनावपूर्ण स्थिति में पहुंचा दिया है। रक्तचाप एवं रक्तमंदता की बीमारी प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इस पर नियन्त्रण के लिए योगासन अकसीर साधन है। कायोत्सर्ग के रूप में खोजी गई विधि जहां व्यक्ति को तनावमुक्त करती है, वहां रक्तचाप एवं उसकी मन्दता पर भी नियन्त्रण करती है। आसनों में श्वास-प्रश्वास का भी विशेष प्रयोग किया जाता है जिससे फेफड़ों की क्रिया पूरी होती है। उसका परिणाम हृदय और रक्त-शोधन पर पड़ता है। आसन का हमारी अन्तःस्रावी ग्रन्थियों ( एण्डोक्राइन ग्लैण्ड्स) पर भी प्रभाव पड़ता है, जो शरीर एवं भावनाओं का नियंत्रण करती हैं, इन ग्रंथियों से एक विशेष प्रकार का स्राव होता है, जिसे हार्मोन कहते हैं। इससे शरीर, मन एवं चैतन्य-केन्द्रों के विकास में सहयोग मिलता है। शरीर-विज्ञान Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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