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________________ १७६ आसन, प्राणायाम और मुद्रा गति के पश्चात् शरीर को कुछ समय तक शिथिल छोड़ देना आवश्यक होता है, जिससे विजातीय तत्त्वों का निरसन एव शरीर में शक्ति संचय हो सके। प्रारम्भ में आसन के अभ्यास से पेशियों पर स्वल्प-सा तनाव आता है, पर क्रमशः अभ्यास के द्वारा आसन की सहज स्थिति तक पहुंचा जा सकता है। उस समय तनाव का अनुभव नहीं होता। केवल पेशियों या किसी अवयव को आकार में ले आना ही आसन का उद्देश्य नहीं है। आसन के साथ शरीर को शिथिल छोड़ना भी आवश्यक है क्योंकि उससे ही स्नायु-संस्थान में ठहरे हुए विजातीय तत्त्वों का शोधन होता है। योग-सूत्र में उल्लिखित "प्रयत्नशैथिल्य” यही अवस्था है। इससे शरीर शिथिल होकर तनाव-मुक्त हो जाता है। आसन-विजय साधना का आधार है। उसके अभाव में व्यक्ति दीर्घ ध्यान, कायोत्सर्ग, भावना-योग आदि का अभ्यास कैसे कर सकता है? आसन का प्रयोग केवल शारीरिक ही नहीं, आध्यात्मिक भी है। आसनों के अभ्यास से न केवल कायसंयम, अपितु वाक् और मन भी संयमित होता है। इससे शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक तनावमुक्ति सहज होती है। आसनों के नियमित अभ्यास से काया अन्तरंग यात्रा के उपयुक्त बन जाती है। बाह्य-क्लेश एवं परीषह-विजय की क्षमता उत्पन्न होने लगती है। आसन और स्वास्थ्य आसन शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शांति एवं आध्यात्मिक विकास के लिए उपयुक्त भूमिका का निर्माण करता है। आसन अस्वस्थ व्यक्ति के लिए उपयोगी है, जो स्वस्थ व्यक्ति के लिए अत्यन्त आवश्यक है। वर्तमान युग में कार्याधिक्य एवं व्यस्तता से मनुष्य अपने जीवन की उपयोगी एवं आवश्यक क्रियाओं का भी परित्याग कर देता है, जिससे न केवल वह स्वास्थ्य से हाथ धोता है, अपितु जीवन-विकास के मार्ग को अवरुद्ध कर देता है। आसन से मानसिक प्रसन्नता के साथ-साथ शरीर के अवयवों पर सीधा असर होता है। संधि-स्थल, पक्वाशय, यकृत, फेफड़े, हृदय, मस्तिष्क आदि सम्यक्तया अपना कार्य करने लगते हैं। आसन में मांसपेशियां सुदृढ़ एवं सुडौल बनती हैं, जिससे पेट एवं कमर का मोटापा दूर होता है। चर्बी भी आसन से स्वयं कम होने लगती है। आसन करने से शरीर के सभी अंग एवं कोशिकाएं सक्रिय हो जाती है जिससे रोग-प्रतिकार की क्षमता एवं स्वास्थ्य उपलब्ध होता है। Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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