SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२३ एक अमरिकन महिला जे. सी. ट्रस्ट ने एक पुस्तक लिखी है-अणु और आभामण्डल (Atom and Ana) | इस पुस्तक में काल्पनिक तथ्यों का संकलन नहीं है। आभामण्डल के चित्र लिए है और छाप है। इसी प्रकार का कार्य सोवियत संघ में किलियन दम्पति द्वारा किया गया। किलियन फोटोग्राफी आभामण्डल के फोटो खींचने की पद्धति है। उन्होंने ऐसे व्यक्ति के पूरे आभामण्डल के फोटो खींच थे, जिनके हाथ या पैर काट दिए थे। आभामण्डल में कटे हुए अंग का भी फोटो आ गया। १६५० में उन्होंने पौधों और प्राणियों में भविष्य में होने वाली बीमारी, जिसका कोई लक्षण वर्तमान में नहीं दिखाई देता, के विषय में आभामण्डल के फोटो से निदान कर बता दिया। _ किर्लियन दम्पत्ति के कार्यों की रिपोर्ट ने डॉ. नरेन्द्रन को १६३४ में ही इस क्षेत्र में कार्य करने के लिए प्रेरित कर दिया था। डॉ. नरेन्द्रन और उसके साथी डॉक्टरों व तकनीशियनों ने मिलकर उपरोक्त उपकरण का विकास किया। इससे रुग्ण व्यक्ति की अंगुली के आभामण्डल का फोटो अंगुली को एक प्लेट पर रखकर लिया जाता है, जिसे एक विद्युत्-पथ के साथ जोड़ा जाता है और इस माध्यम से आभामण्डल को पकड़ा जा सकता है, जिसे कोई भी आदमी अपनी आंखों से देख सकता है। उस आभामण्डल को प्रकाश-तरंग में बदल कर एक कैमरे सदृश उपकरण के द्वारा फोटोग्राफिक कागज पर उतारा जा सकता है। इसके लिए बीमार को किसी भी प्रकार की पूर्व तैयारी की आवश्यकता नहीं होती और न ही रिकार्डिंग के दौरान किसी प्रकार के विकिरणों का प्रसारण होता है। आभामण्डल के रंग और दोष डॉ. नरेन्द्रन कहते हैं कि "जीवित प्राणी में से निकलने वाला आभामण्डल न तो उष्मा है, न ध्वनि। वह एक प्रकार की तरंगों के रूप में होता है। किन्तु स्वस्थ और अस्वस्थ, मृत और जीवित, जीवंत और निर्जीव वस्तुओं के आभामण्डल में निश्चित ही भिन्नताएं होती हैं।" - आभामण्डल में विविध रंग पाए जाते हैं-लाल, हरा, पीला, जामुनी और नीला। सफेद और श्याम रंग नहीं पाए गए। वर्तमान में तो केवल अंगुलियों के अग्रभाग के आभामण्डलों का अध्ययन सीमित है। पिछले तीन वर्षों में (१६८१-१६८४) डॉ. नरेन्द्रन् के दल ने ६३२ बीमार व्यक्तियों का अध्ययन किया है जिनमें स्नायविक गड़बड़ी, उदररोग, स्त्रीरोग आदि के रुग्न थे। स्नायविक (नाड़ीतंत्रीय) गड़बड़ी के भिन्न-भिन्न प्रकार के मरीजों Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy