SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२ 1 प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग देखा जा सकता है किन्तु आभामण्डल के दर्शन हर किसी को नहीं होते शरीर की स्थिरता की साधना करने वाले व्यक्ति को हो सकते हैं. कायोत्सर्ग की प्रगाढ़ अवस्था में आभामण्डल का दर्शन होने लगता है। गहरी ध्यान की स्थिति में भी आभामण्डल दिखाई देता है। अचानक कभी-कभी ऐसा होता है कि ध्यान करते-करते शरीर तो नहीं है, किन्तु पूरे शरीर के आकार की कोई प्रतिमा सामने आकर बैठ गई है। कभी-कभी गहरे अंधेरे में हाथ को देखें। हाथ दिखाई नहीं देगा, किन्तु हाथ के आकार की एक आभा दीखने लग जाएगी, पूरा का पूरा विद्युन्मय हाथ दीखने लग जाएगा, बशर्ते कि अंधकार सघन हो । पिछली कुछ शताब्दियों के दौरान अनेक लोगों ने आभामण्डल के अध्ययन से रोगों के निदान के लिए या स्वास्थ्य और प्राणशक्ति को नापने के लिए नाना प्रकार के उपकरणों को काम में लिया है, जिनमें सीधे-सादे पर चमत्कारी डंडों और केवल हस्त- स्पर्श से लेकर बहुमूल्य मशीनों तक की सामग्री शामिल है। पिछले कुछ वर्षों में मद्रास के गवर्नमेंट जनरल अस्पताल के "इन्स्टीच्यूट ऑफ न्यूरोलॉजी” (स्नायु-विज्ञान संस्थान) में डॉक्टरों के एक दल ने जिसके नेता डॉ. पी. नरेन्द्रन् हैं, किर्लियन फोटोग्राफी की तकनीक को विकसित कर आभामण्डल के फोटो लेने के उपकरण का विकास किया है और इसके माध्यम से अनेक खोजें की हैं और कर रहे हैं। अन्य देशों में इस प्रकार का कार्य चल रहा है। उन्नीसवीं शताब्दी में बेरोन फान राइशनवाख नामक वैज्ञानिक ने यह दावा किया था कि उसने मनुष्य, प्राणी, वनस्पति, चुम्बक आदि से निकलने वाले विकिरणों का पता लगा लिया है तथा इन्हें संवेदनशील व्यक्ति देख सकते हैं । लगभग १९४५ में लन्दन में सेंट थामस अस्पताल के एक कर्मचारी डब्ल्यू. जे. किल्नर ने एक ऐसे ही उपकरण को विकसित किया था । इस उपकरण का नाम "डाईस्थानीनस्क्रीन" था। किल्नर ने अपनी पुस्तक "मानव वातावरण" (Human Atmosphere) में यह बताया है कि जीवित प्राणियों के चारों ओर आभामण्डल होता है, जो यद्यपि चर्मचक्षुओं द्वारा दृश्य नहीं होता, स्वस्थता की दशा और रुग्नावस्था में भिन्न-भिन्न प्रकार का हो जाता है। आगे चलकर कुछ रासायनिक पदार्थों के माध्यम से यह संभव किया जा सका कि सामान्य व्यक्ति भी अपनी आंखों से आभामण्डल को देख सके । Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy