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________________ लेश्या-ध्यान १२१ देता है। वह प्रत्येक व्यक्ति में नहीं होता, केवल विशिष्ट व्यक्तियों में ही होता है। दूसरा है-आभामण्डल (Aura) | इस संसार के प्रत्येक पदार्थ के चारों ओर एक आभामण्डल होता है, चाहे वह मनुष्य हो, पशु हो, पान हो या पत्थर । प्रत्येक पदार्थ के चारों ओर रश्मियों का एक वलय होता है। यह कवच जैसा, सूक्ष्म तरंगों के जाल जैसा या रूई के सूक्ष्म तंतुओं के व्यूह जैसा होता है। ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं-पूरे शरीर के बाहर चारों ओर फैला हुआ होता है। किसी का तीन फुट का, किसी का पांच फुट का और किसी का सात फुट का। किसी का बहुत सुन्दर और बड़ा आकर्षक होता है। किसी का भद्दा और ग्लानि पैदा करने वाला होता है। किसी का आभामण्डल पास में आने वाले व्यक्ति को शांति देता है और किसी का आभामण्डल चिंता या दुर्मनस्कता से भर देता है। दुनिया का हर पदार्थ-चेतन और अचेतन अपने आकार में रश्मियों का विकिरण करता है। ये रश्मियां विद्युत्-चुम्बकीय ऊर्जा या तरंग के रूप में होती हैं। इस निकलने वाली ऊर्जा से आभामण्डल निर्मित होता है। कोई भी पदार्थ, कोई भी अस्तित्व दुनिया में ऐसा नहीं है जिससे यह विकिरण न होता हो। __जीवन्त प्राणी का आभामंडल तैजस शरीर-सूक्ष्म शरीर का विकिरण है। जीवन्त प्राणी में विद्युत्-चुम्बकीय ऊर्जा के साथ प्राण-ऊर्जा भी निकलती रहती है, अतः उनके आभामण्डल तेजस्वी, गतिशील और ज्योतिर्मय होते हैं, जबकि निर्जीव पदार्थ में यह फीके और स्थिर प्रकाश वाला होता है। जीवन्त प्राणी का आभामंडल एकरूप नहीं रहता-बदलता रहता है। निर्मलता, मलिनता, संकोच और विस्तार-ये सारी अवस्थाएं उनमें घटित होती रहती हैं। ऐसा इसलिए होता है कि उसके बदलने वाला लेश्या-तंत्र, भाव-तंत्र भीतर विद्यमान है। प्राणी और पदार्थ में यह मौलिक अंतर है कि पदार्थ में परिवर्तन करने वाला नियामक तत्त्व नहीं होता। अन्य ऊर्जाओं की तरह यह प्राण-ऊर्जा भी हमारे चर्म-चक्षुओं द्वारा देखी नहीं जा सकती। केवल अतीन्द्रिय ज्ञानी (अवधिज्ञानी) ही इसे देख सकता है। फिर भी वैज्ञानिक, चिकित्सक और योगी-सभी लोग इस विषय में एकमत हैं कि आभामंडल का वास्तविक अस्तित्व है और इसके माध्यम से व्यक्ति के भौतिक प्राणिक और चैतसिक अवस्था का चित्र प्रकट होता है। क्या आभामण्डल दीख सकता है? क्या आभामण्डल देखा जा सकता है? हां; बहुत अच्छी तरह से Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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