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________________ अहिंसा दर्शन भगवान् महावीर ने ईसा की छठी शताब्दी पूर्व से ही प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की परम्परा को अक्षुण्ण रखते हुये अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्यायें कीं और जीव हिंसा ही सबसे बड़ा अधर्म है इस बात की घोषणा भी की। चाहे कितना भी बड़ा धर्म क्यों न हो, अच्छाईयाँ और बुराईयाँ हर धर्म में उपस्थित हो जाती हैं। धर्म अपने आप में एक पवित्र तीर्थ है किन्तु उसको धारण करने वाले अनुयायी व्यक्तिगत कमजोरियों को धर्म का जामा पहना कर उसे व्याख्यायित करते हैं और स्वयं के दोषों का आरोप धर्म या सम्प्रदाय पर आ जाता है। धर्म से इन्हीं कमियों को दूर करने के लिए अनेक महात्माओं ने आलोचनायें की हैं और यही कारण है कि धर्म उन दलदलों से थोड़ा-बहुत तो बच पाया। भगवान महावीर ने जो अहिंसा और शाकाहार का सन्देश दिया उसका जबरजस्त प्रभाव पूरे भारतीय जनमानस पर पड़ा। उसके स्वर जैन परम्परा में तो गूंजे ही, अन्य परम्पराओं ने भी इस शाश्वत मूल्य की सहर्ष स्वीकृति दी और उसे अपनाया। 144 संत रविदास जी कहते हैं कि जीव की हत्या करके कोई परमात्मा को कैसे पा सकता है ? क्या महात्मा, पैगम्बर या फ़कीर कोई भी यह बात (हत्यारों को समझाता नहीं है? 'रविदास' जीव कूं मारि कर, कैसो मिलहि खुदाय । पीर पैगंबर औलिआ, कोउ न कहदू समुझाय ॥ वे आगे कहते हैं 2. 3. 'रविदास' मूंडह काटि करि, मूरख कहत हलाल। गला कटावहु आपना, तउ का होइहि हाल ।। रविदास जी कहते हैं कि प्राणियों का सिर काटकर मूर्ख लोग उसे 'हलाल' (धर्मानुकूल हिंसा) कहते हैं। जरा अपना सिर कटाकर देखो कि इस तरह सिर कटाने से तुम्हारा क्या हाल होता है ? रविदास दर्शन, साखी 182, प्रका. राधास्वामी सत्संग व्यास, पंजाब वही, साखी 184
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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