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________________ परिशिष्ट 145 इसी प्रकार अन्य कवि सन्तों ने भी जीव हत्या का घनघोर विरोध किया है। संत दादू कहते हैं (दादू) गल काटे कलमा भरै, अया बिचारा दीन। पाँचों बखत निमाज गुजारै, स्याबित नहीं अकीन ।। संत कबीरदास जी कहते हैं मूरगी मुल्ला से कहै, जिबह करत है मोहिं । साहिब लेखा माँगासी, संकट परिहै तोहिं । 4. 5. 6. 7. 8. बरबस आनिकै गाय पछारिन, गला काटि जिव आप लिआ । जिअत जीव मुर्दा कर द्वारा, तिसको कहते हलाल हुआ। संत रविदास कहते हैं कि 'रविदास' जो आपन हेत ही, पर के मारन जाई। मालिक के दर जाइ करि, भोगहिं कड़ी सजाई । प्राणी बध का कड़ा निषेध करते हुये वे कहते हैं किप्रानी बध नहिं कीजियहि, जीवह ब्रह्म समान । 'रविदास' पाप नंह छूटइ, करोर गउन करि दान ।। जीवों की हत्या न करो, जीव ब्रह्म के समान है ( जीव में ब्रह्म का वास है)। रविदास जी कहते हैं कि करोड़ों गौएँ दान करने पर भी जीव हत्या का पाप नहीं छूटता। गायें दान करने से भी जीव हिंसा का पाप नहीं छूटता यह समझाते हुये कबीरदास जी ने भी कहा दादू दयाल की बानी, भाग 1, साच : 14 सवी कबीर (सखियाँ), पृ. 295 कबीर साहिब का बीजक, पृ. 58 रविदास दर्शन, साखी 185 वही, साखी 186 -
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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