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________________ परिशिष्ट-1 मध्यकालीन भारतीय सन्त और अहिंसा भारत के सन्तों ने जो हिन्दी साहित्य में भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं, अपनी सरल किन्तु सारगर्मित तथा मर्मस्पर्शी वाणी के द्वारा भारतीय समाज को हिंसात्मक पाखण्डों, व्यर्थ के क्रियाकाण्डों तथा रूढ़ियों से निजात दिलाने का बहुत बड़ा काम किया था। सिर्फ हिन्दी साहित्य के इतिहास में ही नहीं वरन् आज भी भारतीय जनमानस में कबीर, रविदास, दादू, रज्जब, मलूकदास, तुकाराम आदि अनेक संत कवियों के नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित हैं। इनकी विशेषता थी कि ये किसी सम्प्रदाय से बँधे हुये नहीं थे। जीवन के छोटे-छोटे अनुभवों से जुड़कर काव्य का सर्जन करते थे और जनमानस को समझाते थे। उनके इन्हीं अनुभवों का संकलन एक नये मानव दर्शन की पृष्ठभूमि बन गया। हिन्दू हो या मुसलमान, सभी धर्मों में व्याप्त बुराईयों की जमकर आलोचना करते थे। इनके दोहे, छन्द आज भी भारत के कण कण में तथा कण्ठों-कण्ठों में व्याप्त हैं और समाज तथा मनुष्य को जीवन की सच्ची राह बताते रहते हैं। इन संतों ने अहिंसा धर्म पर निश्छलता पूर्वक विचार किया और पाया कि समाज में धर्म के नाम पर मांसाहार को प्रश्रय मिला हुआ है जो कि सबसे बड़ा अधार्मिक कृत्य है और नरक का द्वार है। कबीर ने तो मुसलमानों तथा कर्मकाण्डियों दोनों को फटकार लगायी दिन को रोजा रहत है, रात हनत है गाय। येह खून वह बन्दगी, कहु क्यों खुसी खुदाय।। अजामेध, गोमेध जग्य, अस्वमेध, नरमेध। कहहि कबीर अधरम को, धरम बतावे बेद।।' 1. सन्त कबीर, (साखियाँ)-सम्पादक- शान्तिसेठी, प्रका. राधास्वामी सत्संग व्यास पंजाब, दसवां संस्करण - 2003, पृ. सं. 295
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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