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________________ सप्तम अध्याय (2) हृदय और बुद्धि के समन्वय से ही शान्तिपूर्ण और मैत्रीपूर्ण मानव परिवार का निर्माण सम्भव है। (3) करुणा और निष्ठा के अभ्यास से ही हम सही अर्थों में बुद्धानुयायी हो सकते हैं। दूसरों के प्रति दयाभाव रखकर ही हम स्वार्थ को कम करने की शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं, दूसरों के दुःखों को बाँटकर हम अन्य सभी जीवों की भलाई हेतु और संवेदनशील हो सकते हैं। (4) यदि पर-दुःख को दूर करने के लिए अपना सुख तुम उन्हें दे नहीं सकते तो इस वर्तमान जीवन में सुख भी नहीं मिल सकता, बुद्धत्व की आशा व्यर्थ है। (5) जिस प्रेम का सन्देश हम दे रहे हैं, वह ऐसा प्रेम है जो हम उन व्यक्तियों से भी कर सकें, जिन्होंने हमें हानि पहुँचाई है। इस प्रकार का प्रेम सभी सत्त्वों से किया जाना चाहिए। (6) विशुद्ध अहिंसा का सम्बन्ध हमारी मानसिक प्रवृत्ति से है। जब हम शान्ति की बात करते हैं, तब हमारा मन्तव्य विशुद्ध अहिंसा होना चाहिए, मात्र युद्ध का न होना नहीं। उदाहरण के लिए पिछले कई दशकों में यूरोप महाद्वीप में अपेक्षाकृत शान्ति बनी थी, पर मुझे नहीं लगता कि वह सच्ची शान्ति थी। शीतयुद्ध के परिणामस्वरूप जो भय छाया था, यह शान्ति उसी से उत्पन्न हुई थी। (7) अहिंसा की प्रकृति इस प्रकार होना चाहिए, जो निष्क्रिय न होकर दूसरों के कल्याण के लिए सक्रिय हो। अहिंसा का अर्थ है कि यदि तुम दूसरों की सहायता या सेवा कर सकते हो तो तुम्हें करना चाहिए; यदि तुम नहीं कर सकते तो कम से कम दूसरों को हानि नहीं पहुँचाना चाहिए। दलाई लामा का जीवन संघर्षों से भरा रहा किन्तु फिर भी उन्होंने अहिंसा का रास्ता नहीं छोड़ा। उनका अखण्ड विश्वास है कि जिस प्रकार पूरे विश्व से प्रेम और समर्थन जुटाने में वो सफल हुए हैं, उसके पीछे सबसे बड़ा
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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