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________________ 100 अहिंसा दर्शन कारण उनका अहिंसक संघर्ष ही है। महर्षि अरविन्द और अहिंसा भारत के समकालीन दार्शनिकों तथा वैदिक योगियों में जिनका आदर पूरे विश्व में है, उनमें महर्षि अरविन्द का नाम प्रमुख है। श्री अरविन्द का जन्म 15 अगस्त 1872 में हुआ था। श्री अरविन्द की अधिकांश शिक्षा लन्दन में सम्पन्न हुई। चौदह वर्ष बाद जब वे भारत की धरती पर वापस लौटे, तब कई नौकरियाँ करने के बाद वे देशभक्ति के प्रमुख प्रेरणास्रोत के रूप में काम करने लगे। अंग्रेजों ने श्री अरविन्द को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया किन्तु जेल उनके लिए साधना और योग की भूमि बन गया। साल भर वे जेल में रहे, उनके लिए जेल जीवन वरदान साबित हुआ। उन्होंने स्वयं कहा है कि अंग्रेजी सरकार ने उन्हें बन्द करके उनके ऊपर उपकार किया है। श्री अरविन्द का अध्यात्म, मनुष्य को शक्तिशाली बनाने का था। हिंसा-अहिंसा को लेकर उनकी अपनी विशेष मान्यताएँ थीं, जिनका उल्लेख उनकी पुस्तकों में मिलता है। महर्षि अरविन्द ने व्यक्तिगत, सामाजिक और राजनैतिक जीवन में अहिंसा को एक साधन के रूप में स्वीकार किया है। गाँधीजी ने अहिंसा को साध्य बतलाया था जबकि श्री अरविन्द का कथन है कि जिस प्रकार मानव के विकास के लिए जहाँ अन्य अनेक साधन हैं, वहाँ अहिंसा भी एक साधन है। श्री अरविन्द ने राष्ट्र के उत्थान के लिए कभी-कभी युद्ध और हिंसा को भी उचित बतलाया है। अरविन्द के विचारों का सार यह है कि कोई भी सिद्धान्त कितना ही महान् क्यों न हो, उसको जन-जीवन में समानरूप से लागू नहीं किया जा सकता और न ही उससे सबका भला हो सकता है। इसी प्रकार व्यक्ति विशेष के लिए अहिंसा कल्याणकारी हो सकती है किन्तु उसे सब कालों में, सब परिस्थितियों में, सब लोगों के लिए एक समान चरितार्थ नहीं किया जा सकता। अहिंसा एक योगी के लिए तो उपादेय हो सकती है; सामाजिक जीवन के लिए हिंसा और अहिंसा दोनों आवश्यक हैं।
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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