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________________ गाथा परम विजय की विवाह संपन्न हो जाता। न कोई भोज, न कोई सगाई की रस्म। जिसे चाहा, उसके गले में वरमाला पहनाई। अपने जीवन-साथी के चयन । की यह प्रथा बहुत प्रतिष्ठित रही है। समय-समय पर विवाह की प्रथाएं बदलती रही हैं। अब भी कुछ बदल रही हैं। विवाह के साथ दहेज का प्रश्न भी जुड़ गया है। कहीं-कहीं तो मनुष्य गौण और पदार्थ प्रमुख हो गया है। ऐसा लगता है-आदमी की दृष्टि कन्या पर नहीं, पदार्थ पर है। कन्या से भी अधिक मूल्य हो गया है पदार्थ का। एक सामान्य आदमी के लिए अपनी कन्या का विवाह बहुत जटिल बन गया है। जो जीवन मिलन का प्रसंग था, वह प्रदर्शन का प्रसंग बन गया इसीलिए आज दहेज, तलाक आदि अनेक समस्याएं और विकृतियां समाज में बढ़ रही हैं। जम्बूकुमार के अनुरोध पर वहीं कुरलाचल पर्वत पर विवाह का आयोजन हो गया। कन्या विशालवती ने राजा मृगांक के संकेत पर सम्राट् श्रेणिक के गले में वरमाला पहना दी। विद्याधर रत्नचूल, राजा मृगांक, विद्याधर व्योमगति और जम्बूकुमार ने इस मंगल क्षण की वर्धापना की। जिस लक्ष्य को लेकर व्योमगति सम्राट् श्रेणिक की सभा में आया था, वह कार्य सम्पन्न हो गया। विद्याधर और भूमिचर के बीच यह पहला स्नेह संबंध था। इसने विद्याधरों और भूमिचरों के बीच नव आत्मीय संबंधों का श्रीगणेश कर दिया। श्रेणिक ने विद्याधरपति मृगांक और विद्याधरपति रत्नचूल-दोनों को बहुत सम्मान दिया। सम्मान के पश्चात् कहा-'आपको साथ में रहना है, साथ में जीना है इसलिए अब आपस में वैर-विरोध नहीं रहना चाहिए। जम्बूकुमार ने मैत्री का जो अनुबंध कराया है, वह निरंतर पुष्ट बनता रहे।' रत्नचूल और मृगांक ने श्रेणिक की बात स्वीकार करते हुए कहा- 'सम्राट! मैत्री संबंधों के विस्तार में ही राजा और प्रजा का हित है। आप हमारे आत्मीय बन गए हैं। आपके मैत्री-भाव की स्मृति हमें सदा रहेगी। ___व्योमगति की ओर उन्मुख होते हुए सम्राट् श्रेणिक ने कहा-'व्योमगति! तुमने बहुत उत्तम काम किया है। तुम नहीं होते तो यह काम नहीं होता।' व्योमगति बोला-'मैं क्या? महाराज! जम्बूकुमार नहीं होते तो यह काम नहीं होता।' 'व्योमगति! जम्बूकुमार ने किया है पर तुम निमित्त बने हो, तुम्हें साधुवाद।' व्योमगति, मृगांक और रत्नचूल जम्बूकुमार से मिले, बोले-'कुमार! आपने जो काम किया है, हम उसके प्रति कितनी कृतज्ञता ज्ञापित करें, कितना साधुवाद दें। अब हम जा रहे हैं और जाते समय आपका आशीर्वाद लेना चाहते हैं।'
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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