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________________ आश्चर्य की बात है-आशीर्वाद देता है बड़ी अवस्था वाला किन्तु मांगा जा रहा है छोटी अवस्था वाले से। बड़ी-छोटी अवस्था का क्या? जिसकी विशेषताएं बोलने लग जाती हैं, वह छोटा भी आशीर्वाद देने के योग्य बन जाता है। जम्बूकुमार ने कहा-'आपका समझौता हो गया, सब कुछ ठीक हो गया। मैं आपको महावीर की उस वाणी का पुनः स्मरण कराना चाहता हूं- मित्ती मे सव्वभूएस- सब जीवों के साथ मेरी मैत्री है। वेरं मज्झ न ars - किसी के साथ मेरा वैर-विरोध नहीं है।' सबके साथ मैत्री-भाव प्रकट होता है तब पता लगता है कि हमारे भीतर कितना सुख है, कितना आनन्द है। जब कभी द्वेष का भाव, शत्रुता का भाव मन में आता है, सबसे पहले मस्तिष्क में खिंचाव होता है, तनाव होता है। ऐसा तनाव होता है कि कभी-कभी तो दर्दशामक गोलियां लेने पर भी मिटता नहीं है। द्वेष का तनाव, अप्रियता का तनाव, शत्रुता का तनाव बड़ा खतरनाक होता है। उस तनाव में कभी तो हाई ब्लडप्रेशर हो जाता है और कभी कुछ और। जम्बूकुमार बोला—'आप इस बात को याद रखेंगे कि मैत्री बनी रहे। जीवन-व्यवहार की शुद्धि के लिए जम्बूकुमार ने जो उपदेश दिया, उसका बिम्ब इस श्लोक में है सत्त्वे मैत्री गुणिषु प्रमोदं, क्लिष्टेसु जीवेसु कृपापरत्वं । माध्यस्थभावं विपरीतवृत्तौ, सदा ममात्मा विदधातु देव ! ।। विद्याधरपति! यह श्लोक एक मंत्र है। प्रातःकाल उठकर रोज इसका स्मरण करना, ध्यान करना । अध्यात्म का यह मंत्र मैं आपको बता रहा हूं, जिसके आधार पर हमारा सारा व्यवहार अच्छा बन जाता है।' उसका पहला सूत्र है - सब जीवों के साथ मेरी मैत्री है। किसी के साथ मेरा वैर-विरोध नहीं है । दूसरा सूत्र है-—-गुणिषु प्रमोदम्-गुणीजनों के प्रति प्रमोद की भावना । ईर्ष्या नहीं, किसी के प्रति जलन नहीं किन्तु प्रमोद की भावना। सामने वाले व्यक्ति में विशेषता है, गुण है, उसे सहर्ष स्वीकार करो तो तुम्हारी आत्मा भी प्रसन्न होगी। जलन करोगे तो उसका कुछ बिगड़ेगा या नहीं, तुम्हारा तो शरीर भी जलने लग जायेगा। जिसमें जलन पैदा हो गई, ईर्ष्या पैदा हो गई, वह स्वयं जलने लग जाता है। प्रसिद्ध कथा है। पड़ोसी के घर बिलौना होता। पास में रहने वाली बुढ़िया रोज छाछ लाती । एक दिन किसी ने कह दिया-तुम्हें तो पड़ोस अच्छा मिला है, रोज छाछ मिल जाती है। बुढ़िया बोली- 'तुम जानते नहीं हो। जब सुबह-सुबह बिलौना होता है तो ऐसा लगता है - वह मटके में नहीं, मेरी आंतों में होता है।' पूज्य गुरुदेव ने कालूयशोविलास में बहुत सुन्दर लिखा जै माटै खाटे नहीं आयुर्वेद इलाज। तंत्र मंत्र बूटी जड़ी, निवड़ी सब निष्काज || यह जलन और ईर्ष्या ऐसी है, जिसके लिए कोई आयुर्वेदिक इलाज, कोई ऐलोपैथिक दवा या इंजेक्शन नहीं है। ८२ m गाथा परम विजय की m
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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