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________________ - 'राजा मृगांक की प्रतिज्ञा थी कन्या विशालवती का सम्राट् श्रेणिक के साथ विवाह करना है।'व्योमगति ने मृगांक की प्रतिज्ञा को प्रस्तुति दी। 'ओह!'-सम्राट श्रेणिक ने भाव भरे स्वर में कहा। 'सम्राट श्रेणिक! उस प्रतिज्ञा की सफलता में एक अवरोध आ गया, युद्ध की स्थिति बन गई।' 'हां!' 'और अब वह अवरोध समाप्त हो गया इसलिए स्वयं मृगांक सपरिवार यहां आया है।' 'सम्राट श्रेणिक! मैं यथाशीघ्र यह कार्य करना चाहता हूं।' राजा मृगांक भावुक स्वर में बोला। 'राजा मृगांक! आप अभी आए हैं। कुछ विश्राम कर लें।' 'श्रेणिकवर! आपका साक्षात्कार होते ही मन प्रसन्न हो गया। एक क्षत्रिय के लिए प्राणों से भी अधिक मूल्य वचन का होता है। 'हां!' 'जब तक वह पूरा नहीं होता, उसे चैन नहीं मिलता।' 'सम्राट! ऐसा मान लीजिए-मृगांक कन्या को साथ ले आपकी अगवानी में आए हैं और आप बरात लेकर आए हैं।' व्योमगति ने उल्लसित स्वर में कहा। 'मेरा वचन सफल तब होगा जब कन्या विशालवती आपको सौंप दूंगा।' राजा मृगांक ने कन्या-समर्पण का प्रस्ताव दोहराया। 'सबसे पहले यही अपेक्षित है कि विशालवती और सम्राट श्रेणिक का विवाह हो जाये।'-जम्बूकुमार ने मृगांक के प्रस्ताव का समर्थन किया। न कोई महतं देखा. न कोई नक्षत्र। जहां भाग्य प्रबल होता है वहां मुहूर्त साथ में चलता है, नक्षत्र भी साथ में चलते हैं। जहां भाग्य कमजोर होता है, वे भी पीछे हट जाते हैं। अभी तो जम्बूकुमार का भाग्य-सितारा इतना तेज है कि जम्बूकुमार के आस-पास जो कुछ भी हो रहा है, सबके मन को आह्लाद और शुभ सुकून दे रहा है। प्राचीनकाल में विवाह की प्रथाएं जटिल भी थीं और सरल भी। प्राचीनकाल में स्वयंवर भी होता था। न माता को चिंता, न पिता को चिंता। कन्या के लिए चयन का अवकाश। स्वयंवर का आयोजन होता, उस स्वयंवर में अनेक राजा आते। सबका परिचय प्रस्तुत होता। परिचय के बाद कन्या का मन जिसके प्रति आकृष्ट होता, वह उसको वरमाला पहना देती। गाथा परम विजय की CO
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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