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________________ animalsdia गाथा 'सम्राट! यह राजा मृगांक मेरा बहनोई है और वह इसकी कन्या है विशालवती।' राजा मृगांक श्रेणिक से मिलने के लिए आगे बढ़ा। श्रेणिक ने साभिवादन राजा मृगांक का सम्मान किया। कन्या विशालवती ने श्रेणिक के चरणों का स्पर्श किया। व्योमगति ने मिलन क्षण को वर्धापित करते हए कहा-'सम्राट श्रेणिक! राजा मृगांक अपने वचन को पूरा करने के लिए आया है। वह अपनी एकाकी कन्या विशालवती आपको समर्पित करना चाहता है। इसकी भावना का सम्मान आपको करना है।' ___ व्योमगति रत्नचूल की ओर उन्मुख होते हुए बोला-'यह रत्नचूल है, विद्याधरों का स्वामी। शक्तिशाली और तेजस्वी शासक। इसके साथ हमारा युद्ध था।' एस रत्नशिखो नाम्ना, ख्यातो विद्याधराग्रणी। निर्जितो यः कुमारेण, दुर्जयो महतामपि।। श्रेणिक ने साश्चर्य पूछा-'क्या युद्ध समाप्त हो गया?' 'सम्राट! युद्ध समाप्त हुआ है तभी तो हम आये हैं।' 'ओह!' 'युद्ध ही समाप्त नहीं हुआ है, हमने मैत्री का संबंध भी स्थापित कर लिया है। आज तक जो हमारा विरोधी था, शत्रु था, अब हमारा मित्र बन गया है।' श्रेणिक के मन में एक जिज्ञासा हुई, कौतूहल हुआ। सम्राट ने पूछा-व्योमगति! युद्ध कैसे शुरू हुआ, कैसे सम्पन्न हुआ, क्या-क्या स्थिति बनी?' 'सम्राट! युद्ध का सारा वृत्त जम्बूकुमार के पीछे घूम रहा है।' कैसे युद्ध का आरंभ हुआ? कैसे युद्ध का अंत हुआ और जम्बूकुमार की क्या भूमिका रही? जम्बूकुमार ने क्या-क्या किया? अथ से इति तक पूरा घटनाचक्र व्योमगति ने सम्राट श्रेणिक को बताया। श्रेणिक के मन में अतिशय आह्लाद हो रहा था मेरे एक युवक नागरिक ने इतना पौरुष दिखाया, इतना पराक्रम का प्रदर्शन किया। मेरे पास ऐसे योद्धा और नागरिक हैं, मुझे कोई चिंता नहीं है। श्रुत्वेदं तन्मुखाद्राजा, स लेभे निर्वृतिं परां। यथा चंद्रोदये सिन्धुर्वृद्धिमाप सहांभसा।। श्रेणिक ने कहा-'सब बहुत अच्छा हुआ। जम्बूकुमार ने हमारे राज्य के गौरव को शतगुणित कर दिया। यह सचमुच साधुवादाह है।' 'राजन्! यह केवल आपके राज्य का ही गौरव नहीं है। हम सबके लिए एक आदर्श....' 'यह प्रशस्ति-पाठ रहने दो'-जम्बूकुमार व्योमगति का कथन पूरा होने से पूर्व ही बोल उठा-'आप जिस उद्देश्य से आए हैं, उसकी ओर ध्यान दो। जो करणीय है, उसके बारे में सोचो।' ‘अब क्या करना है?' श्रेणिक ने पूछा। परम विजय की
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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