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________________ , opm 'राजा रत्नचूल! मेरी बात ध्यान से सुनो। इस युद्ध को बंद करो। तुम्हें सुख और शांति के साथ जीना है तो चुपचाप अपनी राजधानी चले जाओ। अन्यथा इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा।' रत्नचूल इतना तेज विद्याधर, सैकड़ों विद्याएं जिसे सिद्ध हैं, उसके सामने अनजान युवक सीख देने लग जाए तो कैसा लगेगा? कभी-कभी छोटा नादान बच्चा सीख देने लग जाता है तो बड़े लोग कहते हैं-तुमने जितना अन्न खाया है, उतना मैंने नमक खाया है। तुम मुझे क्या सीख देते हो? रत्नचूल स्तब्ध हो गया। न कोई शस्त्र, न कोई अस्त्र, कुछ भी पास में नहीं, जिससे कोई डरे। किन्तु उसकी वाणी में इतना ओज था कि उसके एक-एक शब्द का रत्नचूल के सिर पर बहुत भार पड़ रहा है। यह है पुद्गल का चमत्कार। शस्त्र क्या है? पुद्गल का ही तो चमत्कार है। जिसकी भाषा वर्गणा में इस प्रकार के शक्तिशाली परमाणु पुद्गल होते हैं तो वे बिना शस्त्र भी शस्त्र बन जाते हैं। वाणी का शस्त्र जितना शक्तिशाली होता है उतना एटम बम भी नहीं होता। __इस वाक् शक्ति, वचन सिद्धि को जैन आचार्यों ने आस्यविष लब्धि कहा है। इसमें अनुग्रह-निग्रह की शक्ति होती है। आस्यविष लब्धि से संपन्न व्यक्ति एक शब्द बोलता है, कल्याण हो जाता है। एक शब्द कभी ऐसा निकल जाता है कि सामने वाला व्यक्ति घोर विपत्ति में फंस जाता है। कुमार को ऐसी कोई शक्ति प्राप्त थी इसीलिए वह शत्रुओं के बीच अकेला खड़ा है और जो सबसे भयंकर नाग है, उसको ललकार रहा है। जो शेर अपनी गुफा में सो रहा है, उससे कह रहा है-आओ, लड़ो। अथ चेत् बलसामर्थ्यान् मात्सर्यं वहसि ध्रुवम्। इदमज्ञविलासोत्थं, दृश्यतेऽद्वैतवादवत्।। 'राजन्! राजा मृगांक ने कहलाया है-यदि तुम इस आग्रह को नहीं छोड़ते हो, युद्ध को नहीं समेटते हो तो युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। उतर आओ रणभूमि में। फिर देखना, तुम्हारा क्या होगा?' रत्नचूल के कानों में जम्बूकुमार के ये शब्द कांटे जैसे चुभ रहे हैं। वह जम्बूकुमार को सुनना नहीं चाहता और मना करने की स्थिति में भी नहीं है। विचित्र असमंजस की स्थिति है। इस हितोपदेश की क्या प्रतिक्रिया होगी? युद्ध के बादल बिखरेंगे या सघन बनेंगे? - शांतिमय शीतल शशि का साक्षात्कार होगा या अशांति की काली कजरारी घटाओं का? गाथा परम विजय की
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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