SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 386
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कोई मुनि बनता है तो आचार्य पूछते हैं- 'तुम क्या बनना चाहते हो? क्या करना चाहते हो ?' अलग-अलग रुचि होती है। कोई कह देता है— 'महाराज! मैं ज्यादा पढ़ तो नहीं सकता । तपस्वी बनना चाहता हूं, तपस्या करना चाहता हूं।' कोई कह देता है-'न मुझसे तपस्या होगी और न मैं कोई ज्यादा अध्ययन करने की क्षमता रखता हूं। मैं तो सेवा करना चाहता हूं। सेवा में मुझे संलग्न कर दें।' कोई कहता है-'महाराज ! मेरी पढ़ने की बहुत इच्छा है, श्रुत को पढ़ने की इच्छा है।' कोई कह देता है - 'महाराज ! मुझे तो ध्यान में रुचि है । मैं ध्यान करना चाहता हूं।' स्वाध्याय का मार्ग, ध्यान का मार्ग, तपस्या का मार्ग, सेवा का मार्ग- ये सब अलग-अलग मार्ग हैं। सब अपनी-अपनी रुचि, अपनी-अपनी क्षमता और अपनी-अपनी भावना के अनुरूप निवेदन करते हैं और आचार्य उसे यथोपयुक्त नियोजित करते हैं। यदि बिना रुचि को जाने यत्र-तत्र नियोजित किया जाता है तो समस्या हो सकती है। अध्ययन के क्षेत्र में भी जहां एक ही कोर्स सबको कराया जाता है वहां समस्या होती है । यद्यपि चुनाव की स्वतंत्रता है। आज का छात्र अपनी रुचि के अनुरूप विषय का चयन करता है। कोई कॉमर्स में जाता है, कोई मेडिकल में जाता है, कोई इंजीनियरिंग में जाता है। अलग-अलग रुचि है। साइन्स की भी अनेक शाखाएं हैं। विद्यार्थी अलग-अलग चुनाव करता है । अपनी रुचि के अनुसार चुनाव करना स्वतंत्रता और विकास के लिए भी बहुत आवश्यक है। जंबू ने कहा- 'भंते! मेरी भावना है आत्मा का साक्षात्कार करूं। आप मुझे ऐसा पथ दर्शन दें, मार्ग बताएं कि मैं आत्मा को देख सकूं।' आत्मा को देखना बड़ा महत्त्वपूर्ण है। आज विज्ञान का इतना विकास हो गया कि कहां से कहां देख लया जाता है पर आत्मा को देखने का कोई साधन अभी विकसित नहीं है। और तो सब दिखाई देता है। ार आत्मा दिखाई नहीं देती। टेलीस्कोप के द्वारा दूरतम नीहारिका को देखने की शक्ति आ गई है। एक आइक्रोस्कोप के माध्यम से एक सूक्ष्म कीटाणु को देखने की क्षमता विकसित हो गई। टेलीस्कोप के द्वारा तीहारिकाओं को, जो सैकड़ों प्रकाशवर्ष की दूरी पर हैं- देख लेते हैं। एक प्रकाशवर्ष कितना बड़ा होता । जैन आगमों में सागर का वर्णन आता है। पल्योपम सागरोपम कितना बड़ा काल है और योजनों की केतनी बड़ी दूरी है। प्रकाशवर्ष तो आश्चर्यकारी बन गया यानी एक सेकंड में प्रकाश की गति एक लाख छयासी हजार माइल। एक मिनट, एक घंटा, एक दिन, एक रात - कब पूरा प्रकाशवर्ष होगा । कितना बड़ा ८८ Um गाथा परम विजय की m (
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy