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________________ (३) (6h A उसके पैर ठिठुर जाते हैं, जिसने छोटा लक्ष्य बनाया। छोटा लक्ष्य बनाया, कुछ चला और पैर ठिठक गये। आगे कहां जायेगा? व्यक्ति ने लक्ष्य बनाया चन्द्रमा पर पहुंचना है। लक्ष्य बनाया चन्द्रमा या आकाश में खेती करना है। अभी वैज्ञानिकों का एक लक्ष्य है कि आकाश में खेती करना है। पृथ्वी बहुत भर गई। आदमियों के लिए स्थान कम है। अब खेती कहां होगी? आकाश में खेती होगी। आकाश में यात्रा तो शुरू हो गई और खेती भी हो सकती है। नगर कहां बसाये जाएंगे? आकाश में बसेंगे, समुद्र के नीचे बसाए जाएंगे। मुंबई बहुत भर गया। अब नया मुंबई बसाना है तो फिर समुद्र के तल में नीचे नगर बसाया जायेगा। लक्ष्य बड़ा बनाते हैं तो विकास होता रहता है। उपनिषद् का एक सुन्दर वाक्य है-यः आत्मवित् स सर्ववित्। जो आत्मा को जानता है, वह सब कुछ जानता है यः आत्मज्ञ सः सर्वज्ञ। आचारांग का सूत्र है-से आयवं-वह आत्मवान होता है, जो आत्मा को साक्षात् देखता है। केवली हुए बिना आत्मा का साक्षात्कार कभी नहीं होता। केवली के सिवाय आत्मा को कोई साक्षात् देख नहीं सकता। मूर्त वस्तु को अवधिज्ञानी देख सकता है। विशिष्ट अवधिज्ञानी, परम अवधिज्ञानी या सर्वावधिज्ञानी परमाणु को देख सकता है। परमाणु इतना सूक्ष्म है, उसका साक्षात्कार कर सकता है पर कोई भी छद्मस्थ क्षायोपशमिक ज्ञान वाला अमूर्त द्रव्य का साक्षात्कार नहीं कर सकता। आत्मा अमूर्त है। न वर्ण, न गंध, न रस और न स्पर्श। कुछ भी नहीं, अमूर्त। उसको छद्मस्थ नहीं देख गाथा __ सकता। अवधिज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी नहीं देख सकता। मात्र केवलज्ञानी ही आत्मा का साक्षात्कार कर परम विजय की सकता है इसीलिए जम्बूकुमार के लक्ष्य की एक ही भाषा है-मुझे आत्मा का साक्षात् दर्शन करना है, मुझे केवली बनना है। णाणा वंजणा-व्यंजन नाना है, णाणा घोसा घोष नाना है किन्तु अभिधेय एक है। दोनों के तात्पर्य में कोई अंतर नहीं है। जंबू स्वामी का लक्ष्य की दिशा में प्रस्थान हो गया। उस दिशा में चलना है। अब जरूरत है साधन की और जरूरत है प्रयत्न की। सुधर्मा का योग मिला। सुधर्मा से बढ़कर कौन उपलब्ध करा सकता है साधन? जो स्वयं केवली हैं वे ही तो रास्ता बता सकते हैं। सुधर्मा जिन्होंने भगवान महावीर की साक्षात् उपासना की, महावीर की सन्निधि में रहे, महावीर के गणधर बने और गण का संचालन किया। द्वादशांगी की रचना की, महावीर के साथ एकदम निकट का संबंध रहा। ऐसा साक्षात् योग मिलना बहुत कठिन है। ___सुधर्मा स्वामी ने पूछा-'जंबू! बोलो क्या बनना चाहते हो?' ३८७
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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