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________________ ! J गाथा परम विजय की प्रकाशवर्ष | जिसकी कल्पना सामान्य आदमी नहीं कर सकता। ऐसे सैकड़ों सैकड़ों प्रकाशवर्ष की दूरी पर जो नीहारिकाएं हैं, उन्हें टेलीस्कोप से देख लेता है। इतनी दूरदर्शन की क्षमता, इतनी सूक्ष्म दर्शन की क्षमता वैज्ञानिक जगत् में आ गई है, फिर भी आत्मा को देखा नहीं जा सकता। आत्मा परम सूक्ष्म है अमूर्त है उसे नहीं देखा जा सकता। उसे केवल केवलज्ञान के द्वारा ही देखा जा सकता है। सुधर्मा ने देखा कि प्रश्न लक्ष्य के अनुरूप है। जम्बूकुमार में योग्यता है और यह साक्षात्कार कर सकता है। जब क्षमता लगती है तो आचार्य वैसा मार्गदर्शन दे देते हैं। सुधर्मा स्वामी ने जम्बूकुमार को वह पथ बता दिया- 'जम्बूकुमार ! तुम स्वाध्याय करो किन्तु तुम्हारे लिए कुण्ड से पानी भरना कोई जरूरी नहीं है। कुण्ड से पानी भरने वाले तो बहुत होते हैं। कुएं में स्रोत होता है पानी का। तुम उस मूल स्रोत का उद्घाटन करो, जिससे सारा श्रुत अपने आप आ जाए।' एक है श्रुत और एक है श्रुत का उद्गम स्थल । गंगा का प्रवाह और गंगोत्री गंगा का प्रवाह तो हर जगह चलता है, अनेक शहरों के पास से गुजरता है पर मूल स्रोत है गंगोत्री। गंगोत्री ठीक है तो गंगा का प्रवाह चलता रहेगा और गंगोत्री न हो तो कुछ भी नहीं। बहुत सारी बरसाती नदियां मेवाड़, मारवाड़ में आती हैं। एक साथ बहुत पानी आ जाता है पर थोड़े दिन बाद सूखी की सूखी रह जाती हैं क्योंकि उनका स्रोत बलवान नहीं है। गंगा यमुना का स्रोत बलवान है इसलिए बारह मास पानी निरंतर प्रवहमान रहता है। 'जम्बूकुमार! तुम उस स्रोत तक पहुंचो, स्रोत को प्रगट करो।' ‘भंते! आप ठीक कह रहे हैं। मैं यही चाहता हूं। उसके लिए आप मुझे मार्गदर्शन दें कि वह स्रोत कैसे प्राप्त हो सकता है? और मैं वहां तक कैसे पहुंच सकता हूं?' सुधर्मा स्वामी ने मार्ग सुझाते हुए निर्देश दिया- 'जंबू ! प्रारंभिक मार्ग है भावविसोहि भाव की विशुद्धि । दूसरा मार्ग है-धर्मध्यान और शुक्लध्यान । शुक्लध्यान तक पहुंचे बिना कोई आत्मा का साक्षात्कार नहीं कर सकता। आत्म साक्षात्कार के लिए शुक्लध्यान में जाना ही होगा । उसके सिवाय कोई उपाय नहीं है।' दो रास्ते बन गये–एक आत्मा के साक्षात्कार का और एक आत्मा से पराङ्मुख होने का, पदार्थ के साक्षात्कार का। एक है आर्तध्यान और रौद्रध्यान का रास्ता । दूसरा है धर्मध्यान और शुक्लध्यान का रास्ता । जो व्यक्ति आर्तध्यान में रहता है, कभी आत्मा का साक्षात्कार नहीं कर सकता । जो व्यक्ति रौद्रध्यान में रहता है, कभी आत्मा का साक्षात्कार नहीं कर सकता। इसीलिए भगवान महावीर ने कहा था- अट्टरुद्दाणि वज्जेज्जा धम्मसुक्काणि झायए–आर्त-रौद्र ध्यान का वर्जन करो, धर्म शुक्लध्यान का प्रयोग करो। व्यक्ति आर्तध्यान में रहेगा तो निरन्तर प्रिय का वियोग, अप्रिय का संयोग - यह चिन्तन चलेगा। प्रिय व्यक्ति, प्रिय वस्तु का वियोग हो गया तो ध्यान उसमें लगा रहेगा, आत्मा की बात कभी सामने नहीं आयेगी। बहुत लोगों का वस्तु पर इतना मोह होता है कि उसे छोड़ना मुश्किल हो जाता है। हिन्दुस्तान की मनोवृत्ति संग्रह की कुछ ज्यादा है। बस घर में कुछ आ गया तो कबाड़खाना भरा रहेगा, फेंकना नहीं जानते, छोड़ना नहीं जानते, त्यागना नहीं जानते। एक मोह हो जाता है। छोटी-छोटी चीज भी घर में पड़ी रहेगी, ३८६
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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