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________________ 100 युवक बोला-'महाशय! आप क्या कर रहे हैं? आप जल्दी दूध पीएं और आत्मा को दिखाएं।' 'युवक! मैंने सुना है-दूध में घी होता है, मक्खन होता है। मैं देख रहा हूं कि वह कहां हैं? मुझे अभी वह दिखाई नहीं दिया।' युवक ने उपहास के स्वर में कहा-'तुम कैसे दार्शनिक हो? इतनी छोटी-सी बात भी नहीं जानते। महाशय! दध में मक्खन भी होता है, घी भी होता है किन्तु क्या वह ऐसे दिखाई देगा?' दार्शनिक तो कैसे दिखाई देगा?' 'महाशय! देखने का एक तरीका होता है। अभी कोरी दर्शन की पोथियां पढ़ी हैं, व्यवहार का ज्ञान नहीं सीखा है।' 'युवक! तुम बता दो कि घी का कैसे पता चलता है?' 'महाशय! पहले गर्म करो, तपाओ फिर दूध को जामन देकर जमाओ, दही बनाओ, फिर दही को मथो तब मक्खन निकलेगा।' दार्शनिक 'युवक! तुमने बहुत अच्छी बात बताई। अब तो तुम्हारे प्रश्न का समाधान हो गया?' युवक 'क्या समाधान हो गया? आपने उत्तर कहां दिया है? न तो आपने दूध पीया और न आत्मा को दिखाया। 'युवक! तुमने स्वयं अपने प्रश्न का उत्तर दे दिया?' युवक (आश्चर्य के साथ)-'मैंने क्या दिया?' 'युवक! आत्मा ऐसे हाथ में दिखाई नहीं देती। पहले अपने आपको तपाओ, तपस्या करो फिर जमाओ। यह मन बड़ा चंचल है। जामन देकर मन को जमाओ, फिर मंथन करो, बिलौना करो। आत्मा हाथ में दिख जायेगी।' 'पिताश्री! तपाये बिना, जमाये बिना और मंथन किये बिना आत्मा का साक्षात्कार नहीं होता। यह सीधा काम नहीं है इसीलिए साध्वी बनना जरूरी है, साधु बनना जरूरी है।' 'पिताश्री! बिना तपस्या के आत्म साक्षात्कार कैसे संभव है?' पुत्रियों ने बात इस प्रकार प्रस्तुत की कि उनका दिमाग भी घूमने लग गया। उन्होंने सोचा-हम इतने बड़े हो गये पर ऐसी तत्त्वज्ञान की बात हमने कभी नहीं सुनी। एक रात में ही जम्बूकुमार ने कैसी भांग की ठंडाई पिलाई है कि इनकी दुनिया ही दूसरी बन गई है। होली पर्व के दिनों में कभी-कभी लोग भांग की ठंडाई बनाते हैं, पिलाते हैं। उसे पीते ही व्यक्ति बेसुध-सा हो जाता है। ऐसे अभूतपूर्व दृश्य दिखाई देने लग जाते हैं कि सिर चकराने लग जाता है। मैंने भी यह अनुभव किया है। जब मैं वैरागी था। दस वर्ष की अवस्था रही होगी। एक बार रामगढ़ गया। रामगढ़ के एक प्रसिद्ध सेठ थे पौद्दार जाति के। उनसे हमारे संसारपक्षीय संबंधी छाजेड़ परिवार के अच्छे संबंध थे। उनको पता लगा एक छोटा बच्चा है, वैरागी है, साधु बनने वाला है। उनकी ओर से हमें भोज दिया गया। गाथा परम विजय की ३७६
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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