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________________ गाथा परम विजय की 'पिताश्री! हम आत्मस्थ हैं, आत्मा में रह रही हैं। हमारा दष्टिकोण बदल गया है इसलिए पिताश्री! आप चिंता न करें। मैं पीछे नहीं रहूंगी, प्रियतम के साथ-साथ रहूंगी, सहभागिनी बनूंगी।' ___पिता ने सोचा-एक दिन में कायाकल्प हो गया। इतना ज्ञान कहां से आ गया? इतनी जानकारी कहां से आ गई? कल तक तो राग से रंजित थी, प्रेमालाप और प्रियमिलन की आकांक्षा थी, आज दूसरा ही राग आलाप रही है। राग कैसे विराग में बदल गया? आठों पिताओं और माताओं ने अपनी-अपनी पत्रियों से पूछा। सबका एक ही उत्तर था-'हमारे मन में एक ललक पैदा हो गई है कि हमें आत्मा का साक्षात्कार करना है।' 'पिताश्री! माताश्री! हमने आपको देखा है, मकान को देखा है, परिवार को देखा है, धन और गहनों को देखा है, न जाने कितने पदार्थों को देखा है पर एक चीज को नहीं देखा, जो आज तक अदृश्य और अदृष्ट बना हुआ है, वह है हमारी आत्मा।' 'पिताश्री! आश्चर्य है कि बाहर तो सबको देख रहे हैं किन्तु जो हमारे भीतर है, उसको हम नहीं देख रहे हैं। अब हम उस दिशा में जाना चाहती हैं, जहां शरीर में अवस्थित आत्मा को देख सकें। जहां हम दूध में घी को देख सकें। 'पिताश्री! दूध को तो हम देखते हैं पर उसमें छिपे घी को हम नहीं देखते। मक्खन कहां दिखाई देता है? हम दूध में छिपे घी और मक्खन को पाना चाहती हैं?' पिता ने कहा-'साधु बनने से क्या होगा? तुम यदि आत्मा को देखना चाहती हो तो घर में रहकर ही देख सकती हो। साध्वी क्यों बन रही हो? ‘पिताश्री! ऐसे आत्मा का साक्षात्कार नहीं होता। प्रियतम ने हमें यह रहस्य समझा दिया है कि आत्मा को देखना है तो क्या-क्या करना होगा।' ‘पिताश्री! मैं आपको एक कहानी सुनाती हूं।' 'एक गांव में एक दार्शनिक तत्त्ववेत्ता आया। उसने अपने प्रवचन में आत्म-साक्षात्कार की बहुत गाथा गाई। एक युवक बोला-'महाशय! इस चर्चा को बंद करो। तुम बलपूर्वक यह कहते हो कि आत्मा है। यदि हथेली में लेकर आत्मा को दिखा दो तो मैं मानूं कि आत्मा है। नहीं तो यह केवल झूठी बकवास है।' युवक के तर्क ने सारे वातावरण को बदल दिया। कुछ लोग कहने लगे कि युवक की बात ठीक है। देखते हैं-दार्शनिक क्या करता है? यदि यह आत्मा को दिखा देगा तो इसकी कथा सही है। अन्यथा मानेंगे कि झूठी बकवास है। ___ दार्शनिक ने कहा-'युवक! मुझे बोलते हुए बहुत देर हो गई। मेरे कंठ सूख रहे हैं। गर्मी का मौसम है। कुछ भूख भी लगी है। तुम एक गिलास दूध ले आओ फिर मैं तुम्हें आत्मा को हथेली में रखकर दिखा दूंगा।' युवक तत्काल गया और एक गिलास दूध ले आया। दार्शनिक ने गिलास हाथ में ले ली। उसने गिलास के भीतर झांकना शुरू किया और कुछ क्षण तक झांकता ही चला गया। ३७५
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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