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________________ गाथा परम विजय की भोज में ठंडाई बनाई। ठंडाई में भांग थी। मैंने वह ठंडाई पी ली। ठंडाई पीने के बाद दुनिया बदलने लगी, सारा सिर चकराने लग गया। ऐसा लगा कि दुनिया क्या है? बहुत विचित्र स्थिति बन गई। बड़ी मुश्किल से मुझे संभाला गया। पिता-माता ने सोचा-ऐसी कोई घुट्टी या ठंडाई पिलाई है कि सबका दिमाग बदल गया है। ये कन्याएं, जो कुछ नहीं जानती थीं, आज ऐसा लगता है कि पूरी तत्त्ववेत्ता बन गई हैं। माता-पिता ने जम्बूकुमार से भी बात की। जम्बूकुमार ने सारा तत्त्व समझाया--'सास-श्वसुरजी! आप सब बैठे हैं। ये आपकी कन्याएं हैं, पुत्रियां हैं, इनको स्वीकृति दें और मैं भी आपका दामाद बन गया। मुझे भी स्वीकृति दें। मैं दीक्षा लेना चाहता हूं, ये भी दीक्षा लेना चाहती हैं और मेरे माता-पिता भी मेरे साथ ही मुनि और साध्वी बनना चाहते हैं। केवल आपकी स्वीकृति की जरूरत है।' कन्याओं के माता-पिता ने सारा वातावरण देखा। उसका ऐसा असर हुआ कि उनका भी मन बदल गया। उन्होंने सोचा-ये दूधमुंही बच्चियां, जिनकी अवस्था १५ वर्ष है, जम्बूकुमार स्वयं भी १६ वर्ष का है। ये सब साधु बन रहे हैं, इसके माता-पिता भी बन रहे हैं तो हम क्यों पीछे रहें? हमने संसार को देखा है, भोगा है, सब कुछ किया है, आखिर तो एक दिन त्याग के मार्ग पर जाना ही होगा। बिना त्याग किये यह धन का चिपकाव, सत्ता का चिपकाव छूटेगा नहीं। ____इस तथ्य को हम सब जानते हैं कि जहां धन, कुर्सी, सत्ता का चिपकाव होता है वहां कैसा दंगल होता है? यह कभी सहसा छूटेगा। आखिर एक दिन तो विसर्जन करना है, छोड़ना है, त्यागना है। एक द्रुतगामी त्वरित चिंतन शुरू हो गया और वह एक निश्चय में बदल गया। तर्कशास्त्र में आता है-उत्पलशतपत्रभेदवत्एक सूई से छेद किया और कमल के सौ पत्ते एक साथ बिंध गए। ऐसा लगता है सबके हृदय एक साथ बिंध गये। चिन्तन का क्रम तो रहा है पर क्रम का पता नहीं चलता। चिंतन इतना तेज गति से चला और सबने निर्णय ले लिया। एक सामूहिक निर्णय हो गया। आठ माता और आठ पिता-सोलह का एक स्वर उठा-हम भी तुम्हारे साथ हैं।' जम्बूकुमार ने साधुवाद देते हुए कहा-'माताश्री! पिताश्री! बहुत अच्छी बात है। स्वागतम् सुस्वागतम्। स्वागत है आपका। क्या सचमुच साधु बनना चाहेंगे?' ‘हां।' यह कहते हुए सबके मुख दमक उठे। ___ जम्बूकुमार प्रसन्न हुआ। पुत्रियों को भी बड़ी प्रसन्नता हुई कि हमारे माता-पिता उसी अच्छे मार्ग पर जा रहे हैं, जिस पर जाने के लिए हम तत्पर हैं। हमने उस युग को देखा है, जब पिता-मां, बेटा-बेटी, चार-पांच व्यक्ति एक साथ दीक्षा ले लेते थे। पति-पत्नी की एक साथ दीक्षा होती थी। जब मैंने दीक्षा ली, उस युग में अनेक संत अपनी पत्नियों के साथ दीक्षित हुए लेकिन जम्बूकुमार के साथ एक पूरा काफिला जुड़ गया है। नौ माता, नौ पिता, आठ पुत्रियां, एक पुत्र, चोरों का सरदार प्रभव और पांच सौ चोर-सबका एक ही स्वर-हम सब साधु बनेंगे। hanee na ३७७
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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