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________________ . .. .. .. amanandir . Home गाथा परम विजय की समुदाय का एक शिष्टाचार होता है। जो नागरिक हैं, नगर में रहने वाले हैं और जिन्हें बहुत कुछ जानने को मिलता है उनका एक शिष्टाचार होता है। शिष्टाचार गांव में भी होता है। गांव में भी बहुत समझदार लोग होते हैं। वहां भी एक शिष्ट आचार है। कैसे चलना, कैसे बैठना, कैसे खड़ा होना-ये सब शिष्टाचार के घटक हैं। धर्मसभा की मर्यादा को जानना भी शिष्टाचार का एक अंग है। एक शब्द है 'शिष्टता'। दूसरा शब्द है 'विनय'। शिष्टता को प्राचीन भाषा में कहा जा सकता है लोकोपचार विनय। एक विनय होता है भीतर का। विनय का एक प्रकार है लोकोपचार विनय लोगों में कैसा व्यवहार अच्छा लगता है। यह जम्बूकुमार का शिष्टाचार और लोकोपचार विनय है कि वह बड़ी शिष्टता के साथ मां के सामने बद्धांजलि खड़ा है और कह रहा है-मां! अब देरी मत करो। एक-एक पल भारी हो रहा है। शीघ्र आपकी प्वीकृति मिले और मैं मुनि बनूं।' मां ने प्रश्न रखा नवविवाहिता बहुओं का 'बेटा! इनका क्या होगा?' जम्बूकुमार ने कहा-मां! ये क्या चाहती हैं, पहले तुम यह जान तो लो।' मां ने उनकी ओर मुड़कर देखा और कहा–'बेटी! क्या चाहती हो तुम?' 'मां! हम आत्मा को देखना चाहती हैं।' मां ने सोचा यह रटा-रटाया उत्तर हो गया। जम्बूकुमार कहा करता था मैं आत्मा को देखना चाहता ई और ये कुछ जानती नहीं हैं, भोली कन्याएं हैं, ये भी कहने लग गईं कि आत्मा को देखना चाहती हैं। ‘आत्मा को देखना चाहती हो पर आत्मा है कहां? क्या है आत्मा? किसने तुम्हें यह झूठी बात बतला दी?' १६४
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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