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________________ दिल्ली की घटना है। एक व्यापारी से किसी ने कहा- 'तुम मिलावट करते हो । मिलावट करना कितना बुरा है?' वह बोला-'सारी दुनिया तो कर रही है। मैं अकेला नहीं करूंगा तो क्या दुनिया का उद्धार हो जायेगा? या तो पूरी दुनिया को छुड़ाओ अन्यथा मुझे अकेले को क्यों कह रहे हो?' बुराई को त्यागने का उपदेश उसकी समझ में नहीं आता, उसकी चेतना नहीं बदलती। चेतना को बदलने के लिए उपाय का होना जरूरी है। जम्बूकुमार अभी भी प्रभव की ब्रेन वाशिंग में पूर्णतः सफल नहीं हुआ है। जम्बूकुमार बड़ी गंभीर वाणी से अपनी बात को समझा रहा है और प्रभव अवधानपूर्वक सुन रहा है। उसके मस्तिष्क पर कुछ प्रभाव डालने में सफल हुआ है इसलिए वह कुछ चिन्तन में अवश्य लीन हो गया। नन्दी सूत्र का एक दृष्टांत है। एक आदमी आवे पर गया। आवे से निकला हुआ एक गर्म-गर्म घड़ा लाया। उसने उस पर पानी की एक बूंद डाली। वह कहां चली गई, पता ही नहीं चला। दूसरी बूंद डाली, उसका भी पता नहीं लगा। तीसरी डाली, चौथी डाली, एक-एक बूंद डालता रहा। डालते-डालते एक क्षण ऐसा आया कि घड़ा गीला हो गया। प्रश्न हुआ-क्या पहली बूंद ने घड़े को गीला किया ? या अंतिम बूंद ने ? किसने किया? अगर यह कहा जाए कि अंतिम बूंद ने घड़े को गीला किया तो यह गलत होगा। यह कहा जाए कि पहली बूंद ने घड़े को गीला नहीं किया तो यह भी गलत होगा। एक-एक बूंद ऊपर गिरती गई, गिरती गई और गिरते-गिरते एक क्षण ऐसा आया कि घड़ा बिल्कुल गीला हो गया। जम्बूकुमार प्रभव को समझा रहा है। अभी तो ऐसा लग रहा है कि गर्म घड़े पर पानी की एक बूंद गिरी है। पता नहीं, वह बूंद कहां चली गई ? क्या ये बूंदें निरन्तर गिरती रहेंगी ? क्या एक क्षण ऐसा भी आएगा, जिस क्षण यह लगे - प्रभव का नस-घट आर्द्र बन गया है? ४ गाथा परम विजय की m
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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