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________________ emal क्षणान्निरुत्तरो जातः, खगो व्योमगतिस्तदा। - मूकीभूत इवातस्थौ, दर्शितुं तत्पराक्रमम्।। श्रेणिक ने सोचा-बात उलझी हुई है। न जाएं तो भी अच्छा नहीं और जाना भी बड़ा मुश्किल है।' श्रेणिक के मन में थोड़ा भय भी पैदा हो गया। विद्याधरों से लड़ना क्या संभव है? आकाश से उनका कोई एक प्रक्षेपास्त्र चलता है तो सारी सेना समाप्त हो जाती है। क्या होगा? कैसे करें? ____ जम्बूकुमार ने कहा-स्वामिन्! आपके मुखारबिन्द पर सलवटें क्यों पड़ी हैं? भय की रेखाएं क्यों खिंची हैं? उदासी क्यों आई है? रत्नचूल को जीतना कोई बड़ा काम नहीं है। आपकी कृपा से सब कुछ हो जाएगा। आप मुझे आज्ञा दें।' ___सब लोग आश्चर्य के साथ देख रहे हैं। श्रेणिक को विश्वास हो गया कि कुमार कोई शक्तिशाली व्यक्ति है। श्रेणिक बोला-'विद्याधर! तुमने ठीक कहा-हम भूमिचर सेना को लेकर कल नहीं पहुंच सकते। हमें तो लंबा समय लगेगा। जम्बूकुमार अकेला युद्ध में जाने के लिए उत्सुक है। क्या इच्छा है तुम्हारी?' विद्याधर भी असमंजस में पड़ गया, वह बोला श्रुत्वा चित्रास्पदं वाक्यमिदमाह खगाधिपः। गतेनापि त्वया तत्र, कर्तव्यं किमथार्भकः।। 'जम्बूकुमार! बड़े उत्साही हो, युवक हो, जोश है। तुम यह तो बताओ अवस्था छोटी, अकेले जाकर क्या करोगे? हत्या का दोष हमें ही तो दिलाओगे। यह उलाहना सिर पर रहेगा-एक बच्चे को ले गए और रणभूमि में काम-तमाम कर दिया। यह दोषारोपण कराना है तो भले चलो। अन्यथा तुम्हारी कोई उपयोगिता नहीं है। तुम कुछ कर नहीं पाओगे। तुम जानते हो -मृग का बच्चा अपनी मां के आस-पास बड़ी चपलता करता है, कूदता-फांदता है। वह तब तक घूमता है जब तक सिंह सामने न आ जाए। सिंह के सामने आते ही उसकी चपलता तिरोहित हो जाती है। तावद्धत्ते स्वसद्मस्थश्चापल्यं मृगशावकः। यच्चाभिमुखो गर्जन्, क्रुद्धो नायाति केशरी।। कुमार! तुम अभी तो चपलता दिखा रहे हो। रणभूमि में जाओगे, उस समय बहुत कठिन काम होगा। अभी तुम्हारा अनुभव विकसित नहीं है, तुमने युद्ध देखा नहीं है। तुम छोटे बच्चे हो। तुम रहने दो।' ___काफी लंबी चर्चा हुई। विद्याधर और जम्बूकुमार-दोनों में अच्छा संवाद हुआ। जम्बूकुमार बोला-'यह कोई शास्त्रार्थ का, वाद-विवाद का समय नहीं है। यह कोई अखाड़ा नहीं है, मल्ल-कुश्ती नहीं करना है। मैं जाना चाहता हूं और सम्राट श्रेणिक मुझे भेजना चाहते हैं। तुम्हें क्या कठिनाई है मुझे ले जाने में? तुम्हें तो इतना करना है कि विमान में मुझे बिठा लो। मैं पैदल चल कर नहीं जा सकता। तुम्हारे विमान में जा सकता हूं। आगे क्या होगा, इसकी चिन्ता मत करो। अभी तुम्हारा एक ही काम है-तुम मुझे अपने विमान में ले जाओ।' गाथा परम विजय की - ३२
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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