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________________ 'प्रभव! मेरे पास तो एक ही विद्या है और वह है अध्यात्म विद्या, आत्म विद्या, आत्मा को जानना।' गीता में श्रीकृष्ण ने कहा-अध्यात्मविद्या विद्यानां सब विद्याओं में श्रेष्ठ होती है अध्यात्म विद्या। यह conn एक विद्या सीख ले, उसको ज्यादा की जरूरत नहीं होती। 'प्रभव! मेरे पास तो और कोई विद्या नहीं है। बोलो, तुम क्या चाहते हो?' 'कुमार! दरवाजे के बाहर थोड़ी दृष्टि डालिए।' जम्बूकुमार ने प्रभव के अनुरोध पर बाहर दृष्टिक्षेप किया। __कुमार! आप देखिए बाहर पांच सौ खंभे खड़े हैं। ये न हिल रहे हैं, न डुल रहे हैं।' तर्कशास्त्र में कहा गया स्थाणुर्वा पुरुषो वा स्थाणु है या पुरुष? जहां दूर से आदमी देखता है और कुछ निश्चय करना होता है वहां अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा होती है। बीच में संशय भी होता है। दूर से कोई पुरुषाकृति दिखाई दी और संशय हुआ 'स्थाणुर्वा पुरुषो वा' यह कोई खम्भा है या आदमी खड़ा है? ___कुमार! मेरे ये पांच सौ साथी खम्भे जैसे खड़े हैं। ऐसा लगता है जैसे 'भित्तिचित्रं'-भित्ति में चित्रांक बना दिये गए हैं। आपने इनके हाथ बांध दिये, पैर बांध दिये।' जम्बूकुमार ने साश्चर्य पूछा-'प्रभव! यहां इतने आदमी क्यों आये?' 'कुमार! आप जानते हैं कि हमारा धंधा क्या है?' 'नहीं, मैं नहीं जानता।' गाथा 'आप जानना चाहते हैं तो मैं विस्तार से आपको सारी बात बताऊंगा। इसमें कुछ समय लगेगा। आप पण विजय की कृपा कर पूरी बात सुन लें और फिर अनुग्रह करें।' 'मैं बात सुनूंगा पर अनुग्रह क्या करना है?' 'कुमार! मेरे पास दो विद्याएं हैं-अवस्वापिनी और तालोद्घाटिनी। आपके पास एक विद्या है 'स्तंभनी'। जिसके पास यह विद्या होती है उसका प्रयोग होते ही आदमी खम्भा बन जाता है। न चल सकता, न हाथ हिला सकता। पूरा खम्भा बन जाता है। आप यह स्तंभनी विद्या मुझे दे दें।' क्या प्रभव का अनुरोध कृतार्थ होगा? क्या विद्या की विफलता उसे नव चिन्तन के लिए अभिप्रेरित करेगी?
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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