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________________ 1CSM गाथा ___परम विजय की हम अनेक बार यह स्वर सुनते हैं पिता ने मुझे कुछ नहीं दिया। केवल यह लोटा देकर घर से निकाल दिया।' वे पिता के शत्रु बन जाते हैं। जहां तत्त्वज्ञान नहीं होता, आदमी सचाई को नहीं जानता वहां उसका व्यवहार प्रतिक्रियात्मक होता है। __प्रभव ने कहा-'कुमार! मेरे पिता ने न मैत्री का प्रयोग किया, न प्रमोद भावना का प्रयोग किया। न करुणा का भाव उनमें था और न मध्यस्थता का भाव रहा। उनका सारा ध्यान छोटे पुत्र को स्थापित करने में रहा। इसलिए उन्होंने छोटे बेटे को राजगद्दी पर आसीन कर दिया।' 'कमार! तम जानते हो कि इस स्थिति में मझ पर क्या बीती? मेरा मन प्रतिक्रिया से भर गया। मैंने सोचा यहां रहना ही अच्छा नहीं है। इस घर का पानी पीना ही अच्छा नहीं है। मैं वहां से निकल गया और सीधा चोरों की पल्ली में पहुंचा।' ___ यह एक स्पष्ट तथ्य है कि अधिकांश अपराधी इन स्थितियों के कारण ही बनते है। इन वर्षों में हमने कुछ डाकुओं के इण्टरव्यू पढ़े। उनसे पूछा गया तुम डाकू क्यों बने? किसी ने कहा-मां ने मेरे साथ बुरा व्यवहार किया। किसी ने कहा-पिता ने मेरे साथ अन्यथा व्यवहार किया। किसी ने कहा-गांववालों और पड़ोसियों ने मेरा तिरस्कार कर दिया। मेरे मन में भारी प्रतिक्रिया हो गई। ऐसी स्थितियों में अपराधी, हत्यारे, आतंकवादी, डाकू आदि-आदि बन जाते हैं। प्रभव ने कहा-'कुमार! चोरों की पल्ली में चोरों ने स्वागत किया। उन्हें प्रसन्नता हुई कि इतना शक्तिशाली, इतना सुंदर और इतना बुद्धिमान राजकुमार हमारा साथी बन रहा है। चोरों ने मुझे अपना सरदार बना लिया, स्वामी बना लिया।' ___कुमार! मेरी अपनी चोर पल्ली है, जहां सैकड़ों-सैकड़ों चोर रहते हैं। ऐसी हमारी धाक है कि कोई उस पल्ली के आसपास आने का साहस नहीं करता।' 'कुमार! अतीत का मेरा परिचय है राजकुमार प्रभव और आज का परिचय है कि मैं चोरों का अधिपति हूं, मालिक हूं, स्वामी हूं।' जम्बूकुमार ने सारी बात सुनी, किन्तु वह अप्रकंप रहा। कन्याएं इस गाथा को सुनकर कांप गईं। जम्बूकुमार धैर्य के साथ बोला-'प्रभव! तुम इतने शक्तिशाली हो फिर क्या चाहते हो?' 'कुमार! तुम कृपा करो।' 'क्या कृपा करना है?' 'मेरी एक प्रार्थना है कि मेरे पास जो दो विद्याएं हैं, वे विद्याएं आप ले लें। मैं आपको अवस्वापिनी और तालोद्घाटिनी विद्याएं सिखा दूंगा।' _ 'प्रभव! मुझे चोरों का अधिपति नहीं बनना है। मैं इन पत्नियों का भी पति नहीं हो रहा हूं तो इन चोरों का पति क्या बनूंगा? तुम्हारी विद्या तुम अपने पास रखो।' ___'कुमार! ठीक है आप न लेना चाहो तो यह आपकी मर्जी है पर आप मुझ पर कृपा करो। आपके पास जो विद्या है वह मुझे सिखा दो।' २११
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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