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________________ 'प्रियतम! मैं भी एक कथा सुनाना चाहती हूं, जिससे मेरा मंतव्य स्पष्ट हो सकेगा।' 'एक राजा की रानी बड़ी होशियार थी, चालाक थी। उस रानी का किसी अन्य पुरुष से प्रगाढ़ प्रेम संबंध भी था। उसे राजा से भी अधिक प्रिय था अपना प्रेमी। उसने सोचा-राजा जब यहां रहता है तब बहुत विघ्न आता है, स्वच्छंद भोग-विलास में बहुत बाधा आती है। मैं क्या करूं? कैसे इस बाधा को दूर करूं? सोचते-सोचते उसके मन में विकल्प आया यदि राजा को किसी बहाने बाहर भेज दूं और राजा वर्षों तक भटकता रहे तो मेरा काम बन जाएगा, कोई विघ्न-बाधा नहीं आएगी। एक दिन रानी अतिशय प्रेम का प्रदर्शन करते हुए बोली-'महाराज! आप चालीस वर्ष के हो गये। आप जानते हैं-चालीस वर्ष तक तो आदमी चढ़ता है, यौवन का उभार रहता है। चालीस वर्ष बाद ढलना शुरू होता है, यौवन से बुढ़ापे की ओर से प्रस्थान हो जाता है।' जैन आगमों में भी ऐसा उल्लेख मिलता है, आयुर्वेद और मेडिकल साइंस का भी यह सिद्धांत है-चालीस वर्ष के बाद आयु में उतार आना शुरू हो जाता है, आंखों की शक्ति भी कम होने लगती है, इंद्रियों की शक्ति भी कम होने लगती है, दांत भी मजबूती को थोड़ा खोने लगते हैं। महारानी ने कहा-'महाराज! आप चालीस वर्ष के हो गये। आप थोड़े दिनों बाद बूढ़े हो जाएंगे, यह अच्छा नहीं होगा। कुछ वर्षों पश्चात् मौत सामने दिखने लग जायेगी इसलिए आपको ऐसा उपाय करना चाहिए, जिससे बुढ़ापा न आये, मौत न आये।' गाथा राजा स्नेह से महारानी की केश राशि को सहलाते हुए बोला-'प्रिये! कैसी हास्यास्पद बात कर रही परम विजय की हो। इस दुनिया में जो आदमी जन्म लेता है, क्या वह कभी एक जैसा रहता है। अवस्था के साथ बुढ़ापा न आए, मौत न आए यह कैसे हो सकता है?' 'महाराज! यह हो सकता है, होता है।' 'प्रिये! कैसे हो सकता है? आज तक जितने संत हुए हैं, महावीर, बुद्ध आदि-आदि जो महापुरुष हुए हैं सबने यह कहा है जम्म दुक्खं जरा दुक्खं रोगा य मरणाणि य। अहो दुक्खो हु संसारो जत्थ कीसंति जंतुओ।। ___ जन्म दुःख है, बुढ़ापा दुःख है, रोग दुःख है और मरण दुःख है। ये चार दुःख माने गए हैं। कोई भी इनसे 2) मुक्त नहीं रह सकता। हर आदमी जन्म लेता है, हर आदमी बूढ़ा भी बनता है, रोगी भी बनता है और मरता भी है। यह जो आर्ष वाणी है, संतों की वाणी है, तीर्थंकरों की वाणी है क्या इसे कोई झुठला सकता है?' ____ महारानी आत्मविश्वास भरे स्वर में बोली-'महाराज! आप इन सब बातों को छोड़ो, इनमें कुछ सार नहीं है। मैं एक उपाय जानती हूं।' _ 'प्रिये! बताओ, कौन-सा उपाय है?' आज जेरेण्टोलॉजी पर शोध हो रही है-बुढ़ापे पर नियंत्रण कैसे किया जाए? प्रयोगशालाओं में यह Un' शोध चल रही है कि मौत पर नियंत्रण कैसे किया जाए? आज के युग का आदमी होता तो यह उपाय बता १
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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