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________________ ‘प्रियतम! वह वानर नर भीतर जाने लगा। स्त्री ने उसका हाथ पकड़ा, बहुत रोका - 'मत जाओ, स्नान मत करो।' अपनी पत्नी के कथन को अनसुना कर वह बावड़ी के भीतर गया। जैसे ही उसने डुबकी लगाई, वह पुनः बंदर बन गया। ‘पुनर्मूषको भव' की घटना चरितार्थ हो गई। एक संन्यासी ने चूहे पर करुणा कर उसे सिंह बना दिया। सिंह बनते ही उसने संन्यासी को अपना भोजन बनाना चाहा । संन्यासी ने फिर अभिशाप दे दिया - 'पुनर्मूषको भव' - फिर चूहा बन जा। जो शेर बन गया था, वह फिर चूहा बन गया। वानर के साथ वही हुआ। बंदर से आदमी बना और आदमी से फिर बंदर बन गया। उसने सोचा- अब क्या करूं? यह तो अच्छा नहीं हुआ। मैं बंदर बन गया। सामने मेरी पत्नी मानवी बनी हुई खड़ी है। ओह ! यह भयंकर समस्या हो गई। अब मैं क्या करूं? वह किंकर्तव्यविमूढ़ सा पत्नी की ओर देखता रहा । कुछ क्षण पश्चात् बंदर अपनी भाषा में बोला- 'तुम भी आओ, डुबकी लगाओ और वानरी बन जाओ।' वह बोली- 'अब मैं नहीं आऊंगी।' वानर ने हताश होते हुए कहा- 'तो मैं अकेला रह जाऊंगा ?' पत्नी ने उसकी मूर्खता का उपहास करते हुए कहा- 'तुमने देख लिया अतिलोभ का परिणाम । अब तुम जानो, तुम्हारा भाग्य जाने। मैं क्या करूं? मैंने तो तुम्हें बहुत समझाया था, कितना निषेध किया था कि तुम लोभ मत करो। मैंने बार-बार कहा था- अति सर्वत्र वर्जयेत् । अतिलोभ मत करो, अतिलोभ अच्छा नहीं होता। तुमने मेरी बात नहीं मानी। उसी का परिणाम है कि तुम पुनः बंदर बन गए।' बंदर ने बहुत आग्रह किया—'तुम आ जाओ, एक बार डुबकी ले लो। हमारा साथ बना रहेगा।' वह बोली- 'मैं तो नहीं आऊंगी।' दोनों में परस्पर वार्तालाप चल रहा था - वानर मान-मनौव्वल कर रहा है कि तुम आओ, डुबकी लगाओ। वह स्त्री कह रही है - मैं डुबकी नहीं लगाऊंगी, मानवी से पुनः वानरी नहीं बनूंगी। संयोग ऐसा मिला कि उसी समय वन-क्रीड़ा के लिए एक राजा उधर आया। उसने एक मानवी को एक वानर के पास खड़े देखा। राजा ने सोचा- यह जंगल में अकेली स्त्री कौन है ? क्या यह कोई वनदेवी है? इतनी सुंदर स्त्री कोई वनदेवी ही हो सकती है। राजा ने अपना रथ रोका, नीचे उतरा। बावड़ी के पास गया, उस नवयौवना सुंदरी को देखा और पूछा - 'तुम कौन हो ? क्या कोई देवी हो?' वह मानवी बोली- 'नहीं, मैं देवी नहीं हूं।' १८६ m गाथा परम विजय की (
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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