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________________ Alond किसान ने कहा-'अच्छा, मेरे बात समझ में आ गई।' वह अपने आपको होशियार मानता था। उसने मन में पूरी योजना बना ली। जब जाने लगा तब ईख के बीज को खरीदा, गाड़ों में भरकर अपने गांव में आया। महीना था आसोज-कार्तिक का। गांव पहुंचते ही घरवालों से बोला-'देखो, आज एक बहुत बड़ा तत्त्व, रहस्य लाया हूं तुम्हारे लिए।' 'क्या रहस्य है?' 'यदि मेरी बात मानो तो रोज मीठा खाओ, कभी कोई कमी नहीं रहेगी।' 'भाई! बात क्या है। 'मैं बीज लाया हूं मिठाई का। इस खेती को तो कटा दो और ईख की बुआई कर दो। उसने भरे ईख की ओर इशारा करते हुए कहा।' ____घर के बुजुर्ग बोले-कितनी मूर्खता की बात कर रहा है। खेती तो पकने को आई है। तुम कहते हो इसको कटा दो। कैसे कटाई करें? ईख यहां होगी कैसे? पीने को तो पूरा पानी नहीं है। ईख कैसे पैदा होगी? ईख को पानी बहुत चाहिए। पानी के बिना ईख की खेती होती नहीं है। आखिर उसमें रस कहां से आता है? वह पानी से ही तो आता है। जलं सर्वरसानां रसम्-सब रसों का रस है जल। यहां जल की बहुत उपलब्धता ही नहीं है तो फिर यह सरसता आयेगी कहां से?' . परिवारजनों ने बहुत समझाया पर वह समझ नहीं पा रहा था। वह भी घर का एक मुखिया था। आग्रही भी था। उसने कहा-यह बात मैं नहीं मानूंगा। मैं सारा रहस्य लेकर आया हूं। जिस व्यक्ति को रहस्य मिल जाता है, वह सफल हो जाता है। मुझे रहस्य मिल गया है। तुम चिंता मत करो। मैं कहूं, वैसे कर लो। जैसे प्रौद्योगिकी का रहस्य मिल जाता है, टेक्नोलॉजी मिल जाती है तो व्यक्ति बहुत आगे बढ़ जाता है। मैं तो ऐसी टेक्नोलॉजी लेकर आया हूं कि तुम्हें मीठा ही मीठा कर दूंगा। सारा भोजन मीठा खिलाऊंगा। उसने किसी का कथन नहीं माना। जो फसल पकने जा रही थी, कटा दी। फसल कटाकर ईख की बुआई कर दी। पानी तो वहां था नहीं। अगर आषाढ़ सावन का महीना होता, तो फिर भी थोड़ा बहुत पानी मिल जाता। महीना था आसोज-कार्तिक का। वर्षा ऋतु समाप्त हो चुकी थी। पानी बरसा नहीं। न कोई नहर और न कोई पानी का स्रोत। ईख का बीज बोया। देखते-देखते थोड़े दिनों में सूख गया। ____ उसने देखा ईख का फल सूख रहा है, पनप नहीं रहा है। घरवालों के पास आया, आकर बोला-ईख की खेती तो पनप नहीं रही है। उन्होंने कहा–'हमने पहले ही तुमको बहुत समझाया था कि तुम ऐसी मूर्खता मत करो। जो प्राप्त फसल है, जो फसल पक रही है उसको तो तुम छोड़ना चाहते हो और जिस ईख की आशा करते हो, मिठाई की आशा करते हो, उसका कोई भरोसा नहीं है। तुम ऐसी मूर्खता मत करो।' ____ प्रियतम! वह बग किसान बड़ा दुःखी बन गया। एक ओर घरवालों का आक्रोश, दूसरी ओर अपनी असफलता का मन में रोष। उसने सोचा मैं असफल हो गया। अपनी असफलता पर उसे बहुत पश्चात्ताप हुआ।' गाथा परम विजय की १७४ --
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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