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________________ 1 / 1. - 'क्या आप नहीं जानते-बग किसान की कथा?' 'समुद्रश्री! मैंने नहीं सुनी वह कथा।' 'प्रियतम! मैंने पहले ही कहा था-आपने पढ़ाई कम की है। आप सदा आराम में रहे। जो लाड़ले इकलौते बेटे होते हैं, लाड़-प्यार में रहते हैं, वे पढ़ नहीं पाते।' आजकल तो प्रायः सब पढ़ते हैं किन्तु पुराने जमाने में कहा जाता था जो बड़े सेठ का बेटा है, लाड़प्यार में रहता है, वह पढ़ाई में नहीं जाता। समुद्रश्री ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा–'प्रियतम! आप तो लाड़-प्यार में रहे, पढ़ाई आपने की नहीं।' जो बच्चा लाडला होता है, उसमें कुछ कमी रह जाती है। पूज्य कालगणी बहुत बार कहा करते थे कि मेरे पैर कमजोर रह गये। पूछा गया-क्यों? कालूगणी ने कहा-मैं इकलौता बेटा था। मां छोगांजी बाहर जाने नहीं देती थीं। उन्हें यह भय रहता कि कहीं बाहर चोट लग न जाये इसलिए मैं खेल नहीं पाया। बच्चा खेलता नहीं है तो वह कमजोर रह जाता है। मेरे पैर कमजोर रह गये। चालीस-पचास वर्ष के आसपास कालूगणी ने गेडिया ले लिया था। 'प्रियतम! आप लाड़-प्यार में पले-पुसे, बड़े घर के आदमी रहे। न पूरी पढ़ाई की और न आपको अच्छा गुरु मिला, न नीति को जाना। फिर भी कोई बात नहीं। अब आप जानना चाहते हैं तो मैं आपको बग किसान की कथा सुनाऊं।' गाथा एक किसान रहता था थली प्रदेश में। वहां ऊंचे-ऊंचे रेत के टीले बहुत होते हैं। पानी कम होता है। परम विजय की उत्तराध्ययन में आता है-थलाओ थल से पानी नीचे चला जाता है, टिकता नहीं है। ऊंचे-ऊंचे टीलों से घिरे गांव में बग नाम का किसान रहता था। उसकी शादी हुई थी मेवाड में। वह सजल प्रदेश था। एक दिन वह ससुराल गया। उसका बहुत स्वागत हुआ। उसके लिए विशेष प्रकार का भोजन बनाया गया। ससुराल में मिष्टान्न बनाए गए। मिठाई के नाम का ही आकर्षण है। किसान ने ससुराल में भोजन किया। तृप्त हो गया। भोजन के बाद अपने साले से पूछा-'सालाजी! बताओ, यह इतना मीठा कैसे होता है?' साला बोला-'गुड़ और चीनी से।' 'क्या उसकी खेती होती है?' 'हां।' 'उसका बीज कौन-सा है?' 'ईख है उसका बीज।' 'ईख कहां होती है?' 'हमारे खेत में होती है।' 'मुझे भी दिखाओ।' साला बहनोई को अपने खेत में ले गया। ईख को देखा, साले ने कहा-यह ईख है, मिठाई का मूल है। d' इससे गुड़ बनता है, राप बनती है, चीनी बनती है, शक्कर बनती है। फिर सारी मिठाइयां बनती हैं। १७३
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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