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________________ .. .. .. . गाथा परम विजय की प्रत्येक प्राणी में आत्मा है। निश्चय नय की दृष्टि से सबकी आत्मा समान है। व्यवहार नय की दृष्टि से सब आत्माएं समान नहीं हैं, बहुत भिन्नता है। एक एकेन्द्रिय प्राणी और एक पंचेन्द्रिय समनस्क प्राणी-दोनों में कितना अंतर है। यह अंतर है चेतना के विकास का। जिस व्यक्ति में मोह की प्रबलता होती है उसकी चेतना दुसरी दिशा में जाती है। जिसमें मोह कम होता है उसकी चेतना दुसरी दिशा में जाती है। दोनों की दिशाएं अलग-अलग हैं, चिंतन अलग है। सोच अलग हो जाती है तो अच्छा-बुरा लगना भी अलग-अलग हो जाता है। एक आदमी को एक चीज अच्छी लगती है। दूसरे को वह अच्छी नहीं लगती। एक उसको निःसार समझता है, एक उसे सारवान् समझता है। मोह की तरतमता के आधार पर, क्षायोपशमिक भाव के आधार पर सत्य के नाना रूप बन जाते हैं। जम्बूकुमार और कन्याओं की दृष्टि में जो अंतर है, उसका कारण भी यही था। जम्बूकुमार को जो अच्छा लग रहा है, वह आठ नववधुओं को अच्छा नहीं लग रहा है। जम्बूकुमार को अच्छा लग रहा है त्याग, संयम और व्रत। नवोढ़ा पत्नियों को अच्छा लग रहा है घर-परिवार, धन और पदार्थ। दोनों की दिशाएं दो हैं, चिंतन भी दो हैं। जम्बूकुमार सोच रहा है मैं इनको समझा लूं, मेरे साथ कर लूं। कन्याएं सोच रही हैं हम जम्बूकुमार को समझा लें और उसके साथ संसार के सुख का भोग करें। ___जम्बूकुमार ने अपनी भूल को स्वीकार किया। उसे सुधारने का प्रस्ताव रखा। इस स्वीकृति से कन्याओं के मानस में एक आशा-किरण प्रस्फुटित हुई। कन्याओं ने एक स्वर में कहा–'भूल तो तब सुधरेगी, जब परस्पर विश्वास हो। आप हमारी बात सुनें, स्वीकार करें, उस पर विश्वास करें तो भूल का सुधार हो सकता है। हमारे प्रति आपका विश्वास ही नहीं है तो हम क्या बात करें और क्यों भूल की ओर इंगित करें?' ___ जम्बूकुमार बोला-'देखो, मैं अविश्वास नहीं करता। मैं अनास्थाशील नहीं हूं, अश्रद्धालु नहीं हूं। मुझमें श्रद्धा है, आस्था है, आत्मविश्वास है पर मेरा एक सिद्धांत है।' 'क्या है आपका सिद्धांत?' सभी कन्याओं ने एक स्वर से पूछा। विश्वासं कुरुषे कुरुस्व यदि त्वं नैवासितं विद्युतौ। स्थैर्ये विश्वसनं सदा हितकरं नो चंचले चंचलम्।। १६४
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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